Sunday, 27 December 2015

ਜਿੰਮੇਵਾਰੀਆਂ

ਛੁੱਟੀਆਂ ਹੋਣ ਕਾਰਣ ਲਗਪਗ ਹੋਸਟਲ ਖਾਲੀ ਸੀ |
ਅਚਾਨਕ ਹਿਲਜੁਲ ਦੇਖੀ .... ਦੀਵਾਰਾ ਵਿਚ ਕੰਬਣ ਨੂੰ ਮਹਿਸੂਸ ਕੀਤਾ ...
ਥੋੜੀ ਦੇਰ ਬਾਅਦ ਹੋਸਟਲ ਵਿਚ ਪੱਜਦੌੜ ਮਚ ਗਈ ਸਭ ਬਾਹਰ ਵੱਲ ਨੂੰ ਦੌੜ ਗਏ |
ਮੈਂ ਭੂਚਾਲ ਨੂੰ ਅਣਡਿਠਾ ਕਰ ਕਮਰੇ ਵਿਚ ਨਿਘ੍ਹ ਮਨਾਉਂਦਾ ਰਿਹਾ |
ਭੂਚਾਲ ਸ਼ਾਂਤ ਹੋਇਆ ਤਾਂ ਸਭ  ਵਾਪਸ ਆਉਣ ਲੱਗੇ |

ਮੈਂ ਇਕ ਨੂੰ ਆਵਾਜ਼ ਮਾਰ ਪੁਛਿਆਂ ਦੌੜ ਕਿਓਂ ਗਏ... ਮੌਤ ਤੋਂ ਕਾਹਦਾ ਡਰਨਾ  ???
ਜਵਾਬ - "ਜਿੰਮੇਦਾਰੀਆਂ ਨੇ ਬਾਹਰ ਆਵਾਜ਼ ਮਾਰ ਲਈ ਸੀ.. ਤਾਂ ਦੌੜਨਾ ਪਿਆ  |"
ਸ਼ਾਇਦ ਬਾਕੀ ਹੋਸਟਲ ਤਾਂ ਆ ਕੇ  ਸੋੰ ਗਿਆ ਪਰ ਮੈਂ ਜਾਗਦਾ ਰਿਹਾ |



ਪੰਕਜ ਸ਼ਰਮਾ


FOR SALMAN FANS



27 दिसंबर अपने आप में ख़ास हैं |
ईद और दिवाली से कम नहीं ...
झूठ नहीं बोलता हूँ ....
एक बार चेक कर के देखे !!!!!!


सलमान खान का प्रशंसक नहीं हूँ ...  साउथ में रजनीकांत को बुरा बोल के आप अपनी टांगें तुड़वा सकते हो ....पंजाब में बब्बू मान के बारे में एक लफ्ज़ बुरा बोल के  ... आप अपनी जान भी गवा सकते हो ....
 ....
सलमान हर किसी के घर में दाल रोटी नहीं देता .... पर  सलमान खान एक धर्म हैं|
उसकी हर साल एक मूवी आती हैं जो 300 करोड़ कमाती हैं |

हिंदुस्तान में आज़ादी के बाद राज कपूर , बलराज साहनी , राजेश खन्ना , और मेरे सब से चहेते जनाब गुरुदत्त साहब आये | यकीन मानो सब अपने अपने समय के किंग रहे हैं पर इतनी लोकप्रियता शायद किसी को नहीं |
 इन सब के बाद आज कल हिंदुस्तान  3 गुटो में बंट चूका हैं ...
शाहरुख़ खान -
आमिर खान -
सलमान खान -

पर सलमान खान हिंदुस्तान में रहने वाले हर उस इंसान की अंदर की आवाज़ हैं |
gym जाने वाला कोई मेहनती इंसान जो gym में जाकर 50 50 किलो के वजन उठाता हैं  हो या फिर गली के मोड़ का कोई वन साइडेड लवर ???
उन सबके लिए तेरे नाम का राधे 'सलमान' भगवान हैं....
कटरीना कैफ कपूर हो या  ऐश्वर्या रॉय बच्चन प्रशंसकों के लिए  माता राधा और माता रुक्मणी के समान हैं | चाहे आज अपना अपना घर बसा चुकी हैं पर फिर भी
.................सलमान प्रशंसकों के लिए दिलासा है कि " जब भाईजान के साथ नहीं कोई नहीं टिकी तो हमारे साथ क्या घंटा किसी ने टिकना था"  ....

 मैं सलमान की HUMAN BEING और लोकप्रियता  का फैन हूँ ....
कॉलेज के सेकंड ईयर में exam बीच में छोड़कर मलोट से पटियाला बॉडीगार्ड की शूटिंग देखने आया था | सुपरस्टार सही मायनो में कहा जाये तो  सलमान को कह सकते हैं | सलमान की कई  फिल्में मैंने देखीं,  मुझे पर्दे का सलमान अच्छा लगता है। थोड़ा ज़्यादा बदमाश है, मगर आज के टाइम का सुपर स्टार  है।
 'हम दिल दे चुके सनम' में ऐश्वर्या भाभी के साथ वो रासलीला परदे पे शायद कोई 100 साल तक न निभा पाये |

 भाई को जब लॉकअप में डालने की बात आई ....सब के दिल पे आ गयी
मानो जैसे सलमान खान एक अदाकार नहीं एक क्रांतिवीर हो ...
वर्चुअल दुनिया में भूचाल सुनामी आ गयी |
सलमान के दोस्त संजय दत्त भी मार्च में बाहर आ जायेंगे | देश का कानून आप लोगो की गलतियां शायद माफ़ कर चूका हैं पर कुछ लोग नहीं .... सलमान की गाड़ी के नीचे दबकर तो एक इंसान मर गया। पर न्याय व्यवस्था के तले दबकर जो लाखों मर रहे हैं उसकी सजा किसको होगी  तेरह साल से चले  हिट एंड रन केस में दोषी पाये जाने के बाद  बम्बई हाई कोर्ट ने सलमान खान को माफ़ी  दे दी है।
एक नेक इंसान होने के नाते सलमान के लिए थोडी हमदर्दी तो हम सब में है पर कानून की नजर में दोषी, दोषी होता फिर वो चाहे Common Man हो या Salman.....
हिंदुस्तान की न्याय व्यवस्था इतनी बोरिंग है कि जिंदगी गुजर जाती है, पीढ़ीयां खत्म हो जाती हैं। आरोपी दुनिया छोड़ देता है, लेकिन न्यायिक लड़ाई अपनी रफ्तार से चलती रहती है।

खैर आपको आपके घर पे जन्म दिन मुबारक हो |
WISH U VERY HAPPY BIRTHDAY

पंकज शर्मा 

Thursday, 24 December 2015

ਅੱਕੜ ਬੱਕੜ

ਅੱਕੜ ਬੱਕੜ ਭੰਭੈ ਭੋੰ .
ਅੱਸੀ ਨੱਬੇ ਪੂਰਾ ਸੌ .....

ਅੱਸੀ ਤੋ ਪਹਿਲਾ ਵੀ ਕੁਝ ਹੁੰਦਾ ਹੈਂ 
ਸ਼ਾਇਦ ਜਿੰਦਗੀ ...?

ਅੱਸੀ ਤੋ ਹੀ ਸ਼ੁਰੂ ਹੁੰਦੀ ਹੋਣੀ 
ਪਹਿਲਾ ਇਕ ਦੋ ਤਿੰਨ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦਾ ਹੋਣਾ ...

ਅੱਕੜ ਬੱਕੜ ਹੁੰਦਾ ਹੈਂ 
ਜਿਸਦਾ ਕੋਈ ਅਰਥ ਹੁੰਦਾ ਹੀ ਨਹੀਂ |


Wednesday, 23 December 2015

ਜਦੋ ਓਹ ਲਫਜ਼ ਉਗਲਦੀ ਹੈਂ ਤਾ ਮੈਂ ਲਿਫਦਾ ਹਾਂ

ਓਹ ਸਿਰਫ ਸਚ ਬੋਲਦੀ ਹੈਂ ...
ਓਹ ਇਕ  ਲਫਜ਼ ਬੋਲਦੀ ਹੈਂ
ਪਰ ਓਸਦੇ ਨਾਲ ਜੁੜੇ ਹੁੰਦੇ ਨੇ ਕਈ ਸਵਾਲ
ਕਈ ਜਵਾਬ
ਹਵਾ ਵਿਚ ਉਡਣ ਲਗਦੇ ਨੇ
ਲਫਜਾ ਵਿਚ ਸੰਗੀਤ ਹੈਂ
ਓਹ ਸੰਗੀਤ ਓਹ ਲਫਜ਼ ਅਸਮਾਨ ਨੂੰ ਸਾਫ਼ ਕਰ ਦਿੰਦੇ ਨੇ ...
ਓਹ ਸੰਗੀਤ ਤਰੰਗਾ ਵਿਚ ਗੂਂਜਨ ਲਗਦਾ ਹੈਂ ....
ਸਾਰੀ ਕਾਇਨਾਤ ਜਿਵੇਂ ਤੇਰੇ ਲਫਜਾ ਦੀ ਗੁਲਾਮ ਹੋਵੇ ..
ਤੇਰੇ ਮੇਰੇ ਤੇ ਰਿਸ਼ਤੇ ਦੀ ਇੰਨੀ ਕੁ ਹੈਂ ਪਰਿਭਾਸ਼ਾ
ਬਸ ਇੰਨੀ ਕੀ ਦੋਹਾਂ ਨੇ ਆਪਣੇ ਅੰਦਰ
ਆਪਣੇ ਆਪ ਨੂ ਜਕੜਿਆ ਹੈਂ |
ਫਿਰ ਅਸਮਾਨ ਰੰਗ ਬਦਲਦਾ ਹੈਂ
ਤੂੰ ਲਫਜਾ ਨੂੰ ਅਧੂਰਾ ਛੱਡ ਤੁਰਦੀ ਹੈਂ |
ਤੂੰ ਬਸ ਮਿਲਿਆ ਹੀ ਕਰ
ਵਿਛੜਿਆ  ਨਾ ਕਰ .
ਵਿਛੜਦੀ ਹੈਂ ਤਾਂ ਵਿਛੜਦੀ ਚਲੀ ਜਾਣੀ ਹੈਂ |
ਤੇ ਮੈ ਲਫਜਾ ਚੋ ਮੋਤੀ ਚੁੱਗ
ਆਪਣੇ ਕਿੱਸਿਆ ਦੇ ਕਾਲਪਨਿਕ ਸ਼ਹਿਰ ਵਿਚ ਗੁਵਾਚ ਜਾਣਾ ਹਾਂ |

ਪੁਛਦਾ ਹਾਂ  ਤਾਂ ਦਸਣਾ ਬੜਾ ਦਸਣਾ ਔਖਾ  ਹੈਂ
ਓਹਦੇ ਨਾਲ ਰਿਸ਼ਤੇ ਬਾਰੇ .......
ਜਿਸਨੂੰ ਲੋਕ ਮੁਹੱਬਤ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ..???
 ਪਰ ਅਜੀਬ ਜਿਹਾ ਅਰਥ ਹੈਂ ਰਿਸ਼ਤਿਆ ਦਾ ਓਹਦੇ ਲਈ
ਕਹਿੰਦੀ  ਮੈਨੂੰ ਭੁੱਲ ਜਾਵੇ ਤਾਂ ਮੰਨਾ, ਕਿ ਤੈਨੂੰ ਮੇਰੇ ਨਾਲ ਮੁਹੱਬਤ  ਹੈਂ

ਫਿਰ ਓਹ ਲਫਜਾ ਵਿਚੋ ਦੀ ਸੁਪਨਾ ਤੋੜ
ਤਾਕੀ ਵਿਚੋ ਗੁੰਮ ਹੋ ਜਾਂਦੀ ਹੈਂ |

ਮੇਰੀਆ ਅਖਾਂ ਖੁਲਦੀਆ ਤੇ ਦੇਖਦਾ ਹਾਂ ਕਿ
ਤਾਕੀ ਵਿਚੋ ਕੋਈ ਅੰਦਰ ਆਉਣ ਲਈ ਜੋਰ ਲਾ ਰਿਹਾ ...
ਮੈਂ ਮੰਨ ਵਿਚ ਸੋਚਦਾ ਹਾਂ ਵੇਖੀ ਵੇ ਰੱਬਾ ਕੀਤੇ ਫਿਰ ਓਹੀ ਹਵਾ ਹੀ ਨਾ ਹੋਵੇ |
ਚਲੋ ਫਾਇਦਾ ਹੀ ਹੋਇਆ ਨੀਂਦ ਟੁੱਟਣ ਦਾ
ਇਕ ਚਾਅ ਲਥਾ ਦੂਜਾ ਹੋਸ਼ ਆਈ |




ਪੰਕਜ ਸ਼ਰਮਾ 

..GOOGLE PLUS ਤੇ ਜੁੜਨ ਲਈ CLICK ਕਰੋ 

MERA MANN

ਸੋਚਿਆ ਸੀ ਅੱਜ ਦਾ ਦਿਨ ਆਪਣੇ ਨਾਮ ਲਾਂਵਾ
ਮਨ   ਦੀ ਆਵਾਜ਼ ਸੁਣਾ...
ਦਿਲ ਤੇ ਪਏ ਬੋਝ ਨੂੰ ਹੂੰਝਾ ..
ਆਪਣੀ ਮਰਜ਼ੀ ਕਰਾਂ...

ਪਰ ਓਹ ਸ਼ਾਂਤ ਸੀ
ਪੁਛਿਆ ਫਿਰ ਤੋਂ ਸਵਾਲ
ਓਹ  ਮਨ ਕਿਥੇ ਹੈਂ ?
ਜੋ ਆਪਣੀ ਮਰਜ਼ੀ ਕਰਦਾ ਸੀ |

ਅਸਮਾਨ ਨੂੰ ਆਪਣੀ ਗੱਲਾਂ ਸੁਣਾਉਂਦਾ ਸੀ
ਆਪਣੇ ਅੰਦਰ ਤੋ ਕੋਈ ਗੀਤ ਆਪਣੇ ਲਈ ਬਣਾਉਂਦਾ ਸੀ

ਅੱਜ ਸਭ ਮੇਰੇ ਕੋਲ ਸੀ
ਵਿਹਲ ,ਫੁਰਸਤ ਤੇ ਇਕਾਂਤ
ਅੱਜ ਦਾ ਦਿਨ ਮੇਰਾ ਹੈਂ
ਆਪਣੇ ਲਈ ਇਕ
ਲੇਖ ,
ਕੋਈ ਕਿੱਸਾ ,
ਕੋਈ ਕਹਾਣੀ ਲਿਖਦਾ ਹਾਂ
ਕੁਝ ਸਫ਼ਰ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਮੰਡੀ ਵਿਚ ਜਾ ਵੜਿਆ
ਤੇ ਖਿਆਲਾ ਨੂੰ ਆਵਾਜ਼ ਮਾਰੀ |
ਪਰ ਓਹ ਖਿਆਲ ਮੇਰੇ ਕੋਲ ਆਉਣ
ਲਈ ਨਾ ਨੁੱਕਰ ਕਰਦੇ ਰਹੇ |
ਮੈਂ ਕਿਹਾ ਮੈਂ ਮਾਲਕ ਹਾਂ ਤੁਹਾਡਾ
ਮੈਂ ਹੁਣ ਆਪਣੀਆ ਸੋਚਾ ਦਾ ਰਾਜਾ ਹਾਂ
ਪਰ ਸੋਚਦਿਆ ਸੋਚਦਿਆ ਕੋਹਰਾ ਵੱਡਾ ਹੁੰਦਾ ਗਿਆ
ਪਰਦੇ ਹੌਲੀ ਹੌਲੀ ਹੱਟਦੇ ਗਏ
ਪਰ ਮੇਰਾ ਮੇਰੇ ਵਿਚ ਕੁਝ ਨਹੀਂ ਸੀ
ਨਾ ਕੋਈ ਮੇਰਾ ਕਿੱਸਾ ਸੀ
ਨਾ ਕੋਈ ਨਜ਼ਮ ਮੇਰੀ ਸੀ
ਬੱਸ ਦਿਲ ਚ ਸਾਲਾ ਤੋਂ ਦੱਬੇ ਚਾਅ ਤੇ ਖਲਿਸ਼ ਸੀ
ਲਮੀਆਂ ਸੋਚਾ ਸੀ

ਮੰਡੀ ਵਿਚ ਸਭ ਦੂਰ
 ਜਾਣਿਆ ਪਹਚਾਣਿਆ  ਸੀ ...
ਕੁਝ ਨਾਲ ਦੇ ਜਨਮੇ ਸੀ
ਕੁਝ ਨਾਲ ਤੁਰਦੇ ਸੀ
ਕੁਝ ਰਾਹ ਜਾਂਦੇ
ਕੁਝ ਅਨਜਾਨੇ ਅਣਜੰਮੇ ਵੀ ਸੀ
ਪਰ ਸਭ ਵਿਚ ਮੈਂ ਹੈਂ ਹੀ ਨਹੀ ਸੀ

ਇਸ ਦਿਨ ਦਾ ਹੁਣ ਮੈਂ ਕੀ ਕਰਾਂ
ਮੰਡੀ ਚੋ ਬਾਹਰ ਨਿਕਲਿਆ ....
ਸੋਚਿਆਂ ਮਖਮਲੀ ਘਾਹ ਤੇ ਤੁਰਦਾ ਘਰ ਪਹੁੰਚਾ
ਪਰ ਦੰਮ ਘੁੱਟਣ ਲੱਗਾ
ਸਾਰਾ ਬ੍ਰਿਹ੍ਮੰਡ ਘੁਮੰਣ ਲਗਿਆ |


PANKAJ SHARMA
.GOOGLE PLUS ਤੇ ਜੁੜਨ ਲਈ CLICK ਕਰੋ 




Tuesday, 22 December 2015

tamaasha ही तो हैं



Tamaasha ही तो हैं 







22 DECEMBER 2015
TIME -05:12 AM

GOOD MORNING

बहुत कम ऐसा होता हैं कि मैं जल्दी सो जाऊं और अलार्म से पहले उठ जाऊं |
ये आँखें जब भी कुछ अलग देख लेती  हैं तो फिर इनें चादर ओड के सोना पसंद नहीं |
उंगिलिया भी लफ्ज़ो से चुगलिया करने से नहीं रूकती |
माज़रा बस इतना सा  के इन्होने ने कल रात  को एक पागल को देख लिया |
फिर क्या था - तब से उंगलिया डिब्बे खोलने कि ज़िद्द किये जा रही थी कि डिब्बे से कुछ देर के लिए फुसफसाना हैं |
उस पागल वेद के बारे में बताना हैं |
उसे एक भयंकर बिमारी हैं |
आपके शहर गाँव में इसका कोई होर्डिंग नहीं लगा होगा |
न हे कोई कलाकार इसका विज्ञापन करता होगा |
जिसे भी ये बीमारी समझ आती होगी वो किसी नीम हकीम कि सलाह देता होगा |
या फिर किसी मनोविज्ञानिक की |
यहीं एक बीमारी हैं " identity crisis " जिसे Multiple Personality Disorder भी बोल सकते हैं |
कहते हैं इंसान लिबास बदल सकता हैं किरदार नहीं |
एक वो किरदार जो 9 साल की उम्र में समाज के दायरों में से कहानियो में प्रवेश होता हैं |
दूसरा हिस्सा कॉलेज पास झूठ की ज़िन्दगी मानो उड़ता परिंदा |
तीसरा वो जो काम्प्रमाइज़ करते हुए चलने वाला |

अगर आप सत्यवादी हैं तो शायद इसे न माने |
समझदार लोग समझते हैं कि सच वही होता हैं जो दीखता हैं |
सच ढूंढते ढूंढते उम्र के अलग अलग  हिस्सों से गुज़र जाते हैं |
स्कूल में टॉप न सही पास भी होते हैं |
कॉलेज में से नौकरी न सही डिग्री ले के निकलते  हैं |
ढूंढते ढूंढते एक दिन वो बन जाते हैं जो बनता देखने के लिए उन्हें पैदा किया गया था |

कुछ किरदार कितने सच्चे होते हैं |
जब कहानीकार उसे रामायण सहित इतिहास व् दुनिया में चलती हर महाभारत का पाठ पढ़ाता है |
शायद कोई ही होगा जिसे बचपन में कहानियां सुन्ना पसंद न होगा |

कुछ देर बाद वेद को देखते देखते पता चलता हैं |
शक्लें बदल रही हैं , वक़्त गुज़र रहा हैं , जिम्मेदारियां का बोझ बढ़ता जा रहा हैं |
पर सब के अंदर एक वेद हैं जो उसे कभी बढ़ा नहीं होने देता |
जो सारे सवाल पूछना चाहता हैं
नकली क्या हैं असली क्या हैं |
कल्पना की हैं ????
जानना चाहा है ???

आसमां है नीला क्यूँ, पानी गिला गिला क्यूँ
गोल क्यों है ज़मीन
बहती क्यूँ है हर नदी, होती क्या है रोशनी
बर्फ गिरती है क्यूँ
सन्नाटा सुनाई नहीं देता, और हवाएं दिखायी नहीं देती
 क्या कभी, होता है ये क्यूँ |
अगर ऐसे तज़ुर्बे बाकी हैं
तो सब ठीक हैं
अगर दिल बार बार सवाल करना भूल गया है
तो सब ठीक हैं

ज़िन्दगी अगर सब कुछ मिल जाने से आराम से गुज़र सकती |
शायद ये दिल भी उम्र के साथ बड़ा हो सकता |
कुछ तज़ुर्बे  अभी भी बाकि है,
जो की सिर्फ सपनो में गीले हैं
जैसे की ये सपना मुझे बार आता हैं ,
की मैं हवा में उड़ रहा हूँ,
परिंदे  के जैसे,
जानता हूँ
 ये सपना नहीं है
ये  ज़िन्दगी ये लफ्ज़ कल्पना नहीं हैं
ये वास्तविकता है,
ये हवा जो मेरे चहरे को चूम रही है,
ये सांय सांय की आवाज मेरे कानो में,
ये यथार्थ है, सच है,
मै सच में
आसमान को चीरता चला जा रहा हूँ,
चला जा रहा हूँ,
कभी रुकते
कभी उड़ते
जानता हूँ समझदारी नहीं हैं
लफ्ज़ो की धोखेबाज़ी हैं
ये सपना नहीं है
मैं उड़ रहा हूँ,
मैं उड़ रहा हूँ।

उड़ते उड़ते अतीत  से वो सारे क़िस्से नामी खज़ाने को ढूंढना हैं जो हमसे छीन के वक़्त की ऊँगली पकड़ा हमें चलता किया गया और कहा गया के समझदार इस खज़ाने का क्या करेंगे |
लेकिन अपना अतीत साथ ले के चलना हैं |
नए साल में बहुत से रंग ढूंढने हैं |
जानता हूँ वो Qissey कहानियाँ काल्पनिकता के परे है?
पर आप ध्यान से हर एक किरदार को पढ़ते रहिएगा  उसमे आपको आपका बिता हुआ कल दिखाई देगा।

आप सभी का स्वागत है मेरी नईं क़िस्सो की महफ़िल में
उम्मीद करता हूँ की यहाँ बिताया हर एक पल आपकी जिंदगी में  खुशी लेकर आएगा।

आपका प्यारा तो नहीं
चाहता भी नहीं हूँ
नसमझदार हूँ
लिखने में अनाड़ी भी हूँ |
पर लेखक नहीं हूँ |
क़िस्से अब ज़िन्दगी का हिस्सा हो गए हैं बिना कल्पना के ज़िन्दगी अधूरी सी लगती हैं
क्यूंकि मेरी बातें  अक्सर यथार्थ व कल्पना का मिश्रण व प्रतिबिम्ब होती हैं और ये आवश्यक नहीं कि वो मेरी व्यक्तिगत जीवन की घटनायें ही हों | हमारे साथियो की तरह आप भी हमें - लेखक, विचारक , ब्लॉगर , क़ाबिल बेरोज़गार, भारतीय, सीधा साधा ,बातूनी , चंट, चालाक ,चटपटा, चटोरा ,पागल कह सकते हैं ...|
एक बार qissey पढ़कर देखिये बाकी मर्जी के मालिक आप है |

पंकज शर्मा 

CHADDYBUDDY



मेरे बहुत ही अज़ीज़ दोस्त...या फिर भाई ही कहना सही होगा....  राजू " को जन्मदिन की ढ़ेरों मुबारकबाद देना चाहूँगा.. भुले बिसरे दोस्त की तरफ से मुबारकबाद कबुल किजिए...
भारत त्योहारो का देश हैं ... मेरा हमारा सबसे मनपसंद त्यौहार है .. राजू  का जन्म दिवस हैं .. जो हर साल २२ दिसंबर  को मनाया जाता हैं ..
राज कुकरेजा जी  हमारे साथ तब से हैं जब पेंट भी नहीं पहनते थे
सही guess किया राजू हमारे CHADDYBUDDY हैं  ..
एक आदर्श बालक की तरह  ज़िन्दगी में अपने मम्मी पापा की खुशियो को मुख्या रखते हुए सब कुछ किया हैं ..मेरे पास कुछ लफ्ज़ रहते हैं जो आज तुम्हारे लिए कहना चाहूंगा | smile emoticon
स्कूल के दोस्तों की बात करूँ तो खुशकिस्मत हूँ के साथ अभी तक बना हैं और आगे भी बना रहे | चाहे दोस्त आज मीलों दूर हैं पर फिर भी लिख के बात कर लेता हूँ , किसी इंसान से मैं बहुत प्रभावित होता हूँ तो दिल से लिखना पसंद करता हूँ |
हर कोई अपनी ज़िन्दगी का हीरो खुद होता हैं |
हर इंसान में भगवान होता हैं अगर ज़िन्दगी के पिछले कुछ सालो को गिनु तो हर बार तेरे लिए दुआ निकलती हैं
ज़िन्दगी में हम कितने रिश्ते बनाते हैं दोस्त .
पर कुछ रिश्ते हमेशा ज़िन्दगी के साथ चलते हैं |
कहते हैं स्कूल कॉलेज की दोस्ती सिर्फ गेट तक होती है ..
ज़िन्दगी की कश्मकश में सिर्फ पास रहते हैं तो वो होते हैं : BIRTHDAY REMINDER या मशीनो में पड़े कुछ नाम और पते
भाई चाहे जो भी करता हैं ..आप से ज्यादा ख़ुशी हमें होती है ..
एक दोस्त की कोई परिभाषा हमसे मांगे तोह हम ज़वाब देंगे - साहिल कुकरेजा .....
लोग कहते हैं जब इंसान पे आफत आती हैं लोगो को भगवान याद आता हैं...
हमारी ज़िन्दगी में आफत बाद में आती हैं ...उससे पहले भाई जान  आते हैं .
 साहिल कुकरेजा !!!!!!!!
छोटी छोटी शरारतें हो या बड़े से बड़े कांड- भागीदारी में सबने बराबर साथ निभाया हैं ...
वक्त की यारी तो हर कोई करता है पर मैं चाहे इनसे चाहे कितना भी दूर हूँ पर ऐसा लगता हैं कहीं न कहीं ऐसा एक शख्स हैं  - कुछ भी हो जाए संभल लेगा |
..सचिन नागपाल और राजू ज़िन्दगी के दो हीरे .... इन दो लोगो की वजह से हममे ये ज़िन्दगी को मस्तमौला अंदाज़ में जीने का गुर सीखा हैं ..

 साहिल कुकरेजा जी हमें तुम  तुम पर बोहत बोहत अहंकार है ,,....
जन्म दिन की बोहत बोहत मुबारकबाद ...
और भाई बाकी बातचीत मिल के बतयाते हैं
तुम्हारा प्यारा दोस्त पंकज शर्मा

Monday, 21 December 2015

ਸਿਆਸਤ


ਸਿਆਸਤ 

 ਡੀ.ਡੀ ਤੋਂ ਸਟਾਰ ਤੱਕ
ਗਿਧੇ ਤੋਂ ਆਰਕੈਸਟਰਾ ਤੱਕ
ਬੁਰਕੇ ਤੋਂ ਉਭਰੇ ਚੀਰਾ ਤੱਕ
ਪੇਕਿਆ ਤੋਂ ਸਹੁਰਿਆ ਤੱਕ
ਮੇਰਿਆ ਤੋਂ ਓਪਰਿਆ ਤੱਕ

ਦਰਦ ਭਰੇ ਗੀਤਾ ਤੋਂ ਝਖੜ ਚ ਬਲਦਿਆ ਦੀਵਿਆਂ ਤੱਕ ...
ਜੰਮਣ ਤੋਂ ਬੇਦ੍ਖ੍ਲੇ ਤੱਕ
ਓਲਟੇ ਤੋਂ ਟੇਢੇ ਤੱਕ
ਮਿਨਤਾਂ ਤੋਂ ਸੋੱਟੇ ਤੱਕ
ਵੰਡਣ ਤੋਂ ਚੀਰਨ ਤੱਕ

ਗੁਲਾਬ ਤੋਂ ਜੋਆਂ ਤੱਕ
ਰੋਕਣ ਤੋਂ ਲਿਟਾਉਣ ਤੱਕ
ਸੂਰਮੇ ਤੋਂ ਸੁਵਾਹ ਤੱਕ
ਧੀਆਂ ਤੋਂ ਪੋਤਰਿਆ  ਤੱਕ

ਬੋਝੀ ਤੋ ਟਰਾਲੀ ਤੱਕ ......
ਲੀਪ੍ਣ ਤੋਂ ਚੱਟਣ ਤੱਕ
ਮਖਣੀ ਤੋਂ ਗ੍ਰੀਸ ਤੱਕ
ਗੋਹੇ ਤੋਂ ਖਾਦ ਤੱਕ
ਸੋਨੇ ਦੀ ਫਸਲ ਤੋਂ ਪਰਾਲੀ ਤੱਕ ...
ਆਸਾਂ ਤੋਂ ਲਾਸ਼ਾਂ ਤਕ
ਹਰਿਆਲੀ ਤੋਂ ਸ਼ਮਸ਼ਾਨ ਤੱਕ
ਏਥੋਂ ਤੋਂ ਅਖੀਰ ਤੱਕ

ਗਾਲੜੀ ਤੋਂ ਗੂਂਗੇੰ ਤੱਕ
ਦਲੀਪ ਤੋਂ ਆਮੀਰ ਤੱਕ
ਛੈਣਿਆ ਤੋਂ ਬਰਛਿਆ ਤੱਕ
ਸੋੰਦਿਆਂ ਤੋਂ ਮਰਿਆ ਤੱਕ
ਕਖਾਂ ਤੋਂ ਲਖਾਂ ਤੱਕ
ਝਲੜੀ ਤੋਂ ਮੜੀਆਂ ਤੱਕ
ਛੱਟੀ ਤੋਂ ਤੇਰੇਵੇਂ ਤੱਕ

ਹੋਰ ਕੀ ਦਸਾਂ ਸਿਆਸਤ ਨਰਕਾ ਤੱਕ ਆਪਣਾ ਰੰਗ ਵਿਖਾਉਂਦੀ ਹੈਂ |


ਪੰਕਜ ਸ਼ਰਮਾ 
GOOGLE+ ਤੇ follow ਕਰਨ ਲਈ CLICK ਕਰੋ |



Saturday, 19 December 2015

ਸਫ਼ਰਨਾਮਾ

ਮੈਂ  ਰੁਤ੍ਬੇਦਾਰ ਨਹੀਂ
ਨਾ ਮਹੁਤ੍ਬਾਰ ਹਾਂ
ਮੇਰੇ  ਹਿੱਸੇ  ਆਉਂਦੇ  ਨੇ  ਕਾਗਜ਼ੀ ਮਹਿਲ   ….ਕੋਰੇ  ਕਾਗਜ਼ਾ  ਤੇ  ਓਲੀਕੇ ਹਰਫ਼   ਨੇ  ਮੇਰੀ  ਮਲਕੀਅਤ | ਮੇਰੇ ਕੋਲ ਮੇਰਾ ਨਾਮ ਹੈਂ ਜੋ ਕਿਰਾਏ ਦੀਆਂ ਜੀਭਾ ਦੇ ਨੱਕ ਨਹੀਂ ਚੜਦਾ ....|

ਏਕ ਗੱਲ ਦੱਸਾ ਜੇ ਮ੍ਣੋਗੇ ਮੇਰੇ ਕੋਲ  ਇਕ ਚਾਂਦੀ ਦਾ ਸੰਮ੍ਸਾਰ  ਹੈਂ | ਇਕ ਚਾਂਦੀ ਰੰਗੀ ਬੰਦੂਕ ਜਿਹਦੇ ਬਾਰੂਦ ਨਾਲ ਮੈਂ ਲਿਫਦਾ ਹਾਂ   ..
ਕਰਜ਼ ਤੇ ਉਧਾਰ ਚੁੱਲਾ ਚਲਾਉਂਦਾ ਹਾਂ , ਓਹਦੇ ਸੇਕ ਨਾਲ ਮੇਰਾ ਦਿਲ ਭਰਦਾ ਹੈਂ ..

ਤਵਾਂ ਕਾਲਾ ਹੋਣ ਤੇ ਪੈਰ ਮੈਨੂ ਧੂਹ ਕੇ ........ਮੇਨੂ ਦੂਰ ਕਿਸੇ ਪਿੰਡ ਵਿਚ ਸੁੱਟ ਆਉਂਦੇ ਨੇ  -
'ਨਾਲ ਲਗਦੇ ਸ਼ਹਿਰ ਦਾ ਪਤਾ ਨਹੀਂ
ਤਹਸੀਲ ਵੀ ਕੋਈ ਹੈਂ ਨਹੀਂ  ਤੇ ...ਜਿਲਾ ਸ਼ਾਇਦ ਪਤਾ ਨਹੀਂ ...

ਓਥੇ ਮੈਂ ਬੇਗਾਨਾ ਨਹੀਂ | ਲੋਕ ਜਾਨੇ ਪਛਾਣੇ ਨਹੀਂ ਪਰ ਫਿਰ ਵੀ ਆਪਣੇ ਜਿਹੇ ਲਗਦੇ |
 ਮੇਰੀ ਬੋਲੀ ਓਥੇ ਸਭ ਨੂ ਸਮਝ ਆਉਂਦੀ ਹੈਂ |
ਆਸ ਪਾਸ ਲੋਕ ਨੇ...
 ਸਭ ਮੇਨੂ ਜਾਣਦੇ ਨੇ !!!!!!!!

ਸਚ ਦੱਸਾਂ  ! ਤਾ ਮੇਨੂ ਸਿਰਫ ਇਕ ਦੇ ਸਿਵਾ  ਹੋਰ ਕਿਸੇ ਦੀ ਪਹਿਚਾਨ ਨਹੀਂ |
ਮੇਰੇ ਹਥ ਵਿਚ ਲਕੀਰਾ ਤੋ ਬਿਨਾ ਕੁਝ ਨਹੀ
ਫਿਰ ਵੀ ਕੁਝ ਘਟ ਨਹੀ ਲਗ ਰਿਹਾ...

ਮੇਰੀ ਇਸ ਦੌਲਤ ਦਾ ਕੋਈ ਸ਼ਰੀਕ ਨਹੀਂ ...
ਇਥੇ ਮੈਂ ਦੋ ਪੈਰਾ ਮੋਟਰ ਤੇ ਪੂਰੇ ਵਾਯੂਮੰਡਲ ਦੀ ਸੈਰ ਤੇ ਨਿਕਲਦਾ ਹਾਂ

ਟਾਰਚ ਨਾਲ ਅਖਾ ਵਿਚ ਸੂਰਜ ਮਾਰ ਕੇ ਕੋਈ ਮੇਰਾ ਰਾਸਤਾ ਰੋਕਦਾ
ਕਹਿੰਦਾ ਹੈਂ ਮੇਰੀ ਧੀ ਤੁਹਾਨੂ ਰਸਤਾ ਸ੍ਮ੍ਝਾਏਂਗੀ.........
ਨਮਸ੍ਕਾਰ !
ਹਥ ਮਿਲਾਇਆ
 ਫਿਰ ਮੁਸਕਰਾਉਣਾ
ਮੈਂ ਓਸਨੂ ਪਹਿਲਾ ਤੋ ਜਾਣਦਾ ਹਾਂ |
ਸ਼ਾਇਦ ਕਿਸੇ ਕਿਤਾਬ ਵਿਚ ਪੜੀ ਹੋਈ ਕੋਈ ਨਜ਼ਮ ਹੈਂ
ਪਰ ਯਾਦ ਨਹੀਂ ਆਉਂਦਾ ਪਹਿਲੀ ਮੁਲਾਕਾਤ ਦਾ |
ਪਰ ਵਾਕਿਫ਼ ਹਾਂ ਅਕਸਰ ਮਿਲਦਾ ਹਾਂ ਪਾਤਾਲ ਦੇ ਉਪਰ
ਬਦਲਾ ਥੱਲੇ |

ਓਸ ਪੁਛਿਆ ਕਰਦੇ ਕੀ ਹੋ ?
ਭੇਸ ਬਦਲਦਾ ਹਾਂ
ਕਿਰਦਾਰ ਇਕ ਹੀ ਹੈ ਮੇਰੇ ਕੋਲ
ਤੇਰੇ ਘਰ ਤੋ ਦੂਰ ਦਖਣ ਵਾਲ ਘਰ ਹੈ ਮੇਰਾ
ਚਾਂਦੀ ਦੀ ਬੰਦੂਕ ਨਾਲ ਸਫੇਦ ਕਾਗਜ਼ ਨੀਲੇ ਕਰਦਾ ਹਾਂ ..
ਖਾਣਾ ਖਾਣ ਤੋ ਬਾਅਦ ਖਿਆਲਾ ਨੂੰ ਠੀਕ ਕਰ ਕੇ ਆਪਣੇ ਲਈ ਤੇਰੇ ਤਕ ਪਹੁੰਚਣ ਦਾ ਜ਼ਹਾਜ਼ ਤਿਆਰ ਕਰਦਾ ਹਾਂ
ਕਦੀ ਕਦੀ ਕੰਮਕਾਰ ਵਿਚ ਸਿਹਤ ਖਰਾਬ ਹੋ ਜਾਵੇ ਤਾਂ
ਪਾਣੀ ਵਿਚ ਜ਼ਹਰ ਘੋਲ  ਤੇਰੇ ਕੋਲ ਆ ਜਾਂਦਾ ਹਾਂ |

ਮੈਂ ਕੋਈਂ ਕਵੀ ਨਹੀਂ ਹਾਂ ਕੋਈ ਲਿਖਾਰੀ ਵੀ  ਨਹੀ ਹਾਂ |
ਬਸ ਜੋ ਮਹਿਸੂਸ ਕਰਦਾ ਓਸੇ ਨੂੰ ਲਿਖਤੀ ਜ਼ੁਬਾਨ ਦੇਣਾ ਫਰਜ਼ ਮੰਨਦਾ ਹਾਂ |
ਅਗਰ ਇਸੇ ਨੂ ਇਹ ਕਹਿੰਦੇ ਨੇ ਤਾ ਮੈ ਆਪਣਾ ਗੁਨਾਹ ਕਬੂਲ ਕਰਦਾ ਹਾਂ |

ਇਹਨਾ ਸੁਣਦੇ ਹੀ ਰਾਸਤੇ ਵਿਚ ਚਮਕੀਲੇ ਬੋਰਡ ਪੜਦਾ ਮੈਂ ਦੋ ਪੈਰਾਂ ਦੀ
ਰਫਤਾਰ ਨੂੰ ਹੋਲੀ ਕਰ ਕੇ ...
ਨੀਂਦ ਉਡਾਉਣ ਵਾਲੇ ਨੂ ਕਿਹਾ .......
ਮੇਰੇ ਫੇਫੜਿਆ ਦੇ ਸ੍ਲੇੰਡਰ  ਵਿਚ
ਅਨਗਿਨਤ ਸਾਲਾ ਦੀ ਆਕਸੀਜਨ ਬਾਕੀ ਹੈਂ |

ਚਲਦੇ ਚਲਦੇ ਆਪਣੀ ਜਨਮ ਭੂਮੀ ਨੇੜੇਓ ਦੀ ਲੰਘਿਆ ......
ਰੋਂਦੇ ਬਰਫ ਦੇ ਆਦਮੀਆ ਦੀ ਕਤਾਰ ਦੇਖੀ ...
ਓਹਨਾ ਦੀਆ ਚਮਕਦੀਆ ਅਖਾ ਦੇਖੀਆ...
ਤੇ ਓਸਨੂ ਵੀ ਦਿਖਾਇਆ |
ਓਹ ਸਫੇਦ ਚੇਹਰਾ ਝੁਰਰੀਆਂ ਨਾਲ ਬਿਲਕੁਲ ਅਲਗ ਭੀੜ ਵਿਚੋ
ਇਹ ਓਹੀ ਬਰਫ ਦਾ ਆਦਮੀ ਸੀ ਜੋ ਬਚਪਨ ਵਿਚ ਮੇਨੂ ਮੰਦਿਰ ਦੀਆ ਪੌੜੀਆ ਤੇ ਦਿਖਦਾ ਸੀ |

ਬਰਫ ਦੇ  ਆਦਮੀ ਦੀਆਂ ਅਖਾਂ ਵਿਚ ਲਾਲ ਲਹੂ
ਓਹਦੇ ਲਹੂ ਨੂ ਚਾਂਦੀ ਤੇ ਹਰੇ ਕਾਗਜ਼ਾ ਨਾਲ ਪੂੰਝਿਆ ਤੇ
ਆਜ਼ਾਦ ਕੀਤਾ ਤੇ ਬਰਫ ਦਾ ਆਦਮੀ ਹਸਦਾ ਹੈਂ |
ਸਾਡੇ  ਦੋਵਾ ਦੇ ਸਿਰ ਬੱਦਲ   ਧਰ ਗਿਆ ...
ਜਾਂਦੇ ਜਾਂਦੇ ਨੇ  ਆਵਾਜ਼ ਦਿਤੀ- "ਤੇਰੀ ਦੌਲਤ ਤੇ ਸੁਪਨੇ ਚੋਗ੍ਣੇ ਹੋ ਜਾਣ ...."

ਮੈਂ ਹ੍ਸਿਆਂ ਤੇ ਆਪਣੀ ਦੌਲਤ ਦਾ ਹਥ ਫੜ ਸੁਪਨੇ ਵਲ  ਮੁੜ  ਤੁਰ ਪਿਆ .... |

ਮੇਰੀ  ਆਸ  ਹੈ  ਕੀ  ਮੇਰੇ ਏਥੋਂ ਦੇ ਕਚੇ ਮਕਾਨ
ਕਿਸੇ ਭੂਚਾਲ ਨਾਲ ਮਿੱਟੀ ਨਾ ਹੋ ਜਾਣ ..
ਮੈਂ ਨਹੀਂ ਚਾਹੁੰਦਾ ਮੇਰੀਆ ਗੱਲਾਂ ਕਿਸੇ
ਡੰਡੀ ਨਾਲ ਰੁੱਕ ਜਾਣ |
ਮੇਰਾ ਨਾਮ ਕਿਸੇ ਘਾਣ ਨਾਲ ਨਾ ਜੋੜਿਆ ਜਾਵੇ

ਮੇਰੇ ਕਿੱਸੇ  ਚੜਦੀ  ਸਵੇਰ  ਦੀ  ਲਾਲੀ  ਵਿਚੋ  ਮੇਰੇ  ਸ਼ਰੀਕਾ  ਦੇ  ਕੰਨਾ  ਵਿਚ  ਨਹੀਂ ਬੋਲਣਗੇ  ..
 ਮੈਨੂ ਡਰ ਹੈਂ
ਕਿੱਤੇ  ਇਹ  ਕਿਸੇ  ਪ੍ਰਸ਼ੰਸਕ  ਆਲੋਚਨਾ  ਦਾ  ਵਿਸ਼ਾ  ਨਾ  ਬਣ  ਜਾਏ  …
 ਮੇਰੇ ਸਕੇ   ਬਹੁਤ  ਕਾਹਲੇ  ਨੇ  ਮੇਰੀ ਜਾਇਦਾਦ  ਨੂ  ਵੰਡਣ  ਲਈ ….
ਮੈਥੋ ਮੜਿਓ   ਉਜੜ ਕੇ  ਫਿਰ  ਦੁਬਾਰਾ ਜਾਇਆ ਨਹੀਂਓ  ਜਾਣਾ  ….
ਪਰ ਮੈਂ ਆਂਖਦਾ ਹਾਂ
ਜੇ  ਕਰ  ਸਕਦੇ  ਹੋ  ਟੋਟਕੇ  ਵਸੀਅਤ  ਨੂ  ਪੁਗਾਉਣ  ਲਈ…..
ਤਾਂ  ਮੈਂ  ਅੱਜ   ਹੀ  ਮੜੀਆਂ  ਵਿਚ  ਉਤਰਨ  ਲਈ ਤਿਆਰ ਆਂ  ….|
ਆਪਣੇ  ਫੇਫੜਿਆ ਨੂੰ ਧੋਖਾ ਦੇਣ ਲਈ ਤਿਆਰ ਹਾਂ |

ਮੇਰੇ ਤੇ ਨਸੀਹਤਾਂ ਦੀ ਦਾਰੂ ਬੇਅਮਲ ਹੈਂ ..
ਉਗਦੇ ਸੂਰਜ ਨਾਲ ਸਾਰਾ ਵਾਯੂਮੰਡਲ ਚਲਣ  ਲਗਦਾ ਹੈਂ
ਲੋਕਾ ਨਾਲ ਮੇਰਾ ਆਲਾ ਦੁਆਲਾ ਭਰਨ ਲਗਦਾ ਹੈਂ |
ਭੀੜ ਵਿਚ ਹਰ ਕੋਈ ਮੇਨੂ ਜਾਣਦਾ ਹੈਂ ਪਰ ਵੀ ਕਿਸੇ ਨੂੰ ਪਹਿਚਾਨਣਾ ਔਖਾ ਹੈਂ |
ਭੀੜ ਵਿਚ ਹਰ  ਇਕ ਦੇ ਚੇਹਰੇ ਤੇ ਮ੍ਖੋਟਾ ਹੈਂ ਜਿਸਨੂ ਓਹ ਕਵਚ ਕਹਿੰਦੇ ਨੇ |
ਕਿਸੇ ਦੇ ਮਖੋਟੇ ਤੇ ਮੋਤੀ ਹਾਰ ਚਮਕਦਾ  ਹੈਂ
 ਤੇ ਹਰ ਇਕ ਦਾ ਇਕ ਦਾ ਗੁਪਤ ਚੇਹਰਾ ਹੈਂ ਜੋ ਓਹਨਾ ਦੀਆ ਖਾਮੀਆਂ ਨੂ ਲੁਕਾਉਂਦਾ ਹੈਂ |

ਆਵਾਜਾਈ ਦੇ ਦੌਰ ਵਿਚ ਵੀ ਮੈਨੂ ਇੰਜਣਾ ਦੀ ਟੈੰ ਟੀਂ ਟੋੰ ਨਹੀਂ ਸੁਣਦੀ ...
ਬੱਸ ਕੋਈ ਚੁਪਚਾਪ ਚਾਨਣ ਨੂ ਮੁਰਝਾਉਂਦਾ ਵੇਖ ਸੁੰਨ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈਂ  .....
ਆਪਣੇ ਦੋ ਪੈਰਾ ਵਾਹਨ ਨੂੰ ਕਿਤੇ ਰਾਹ ਵਿਚ ਰੋਕਦਾ ਹਾਂ
ਮੰਦਰ ਦੀਆ ਪੋੜੀਆਂ ਤੇ ਬੈਠਾ ਇਕ ਬਰਫ ਦਾ ਇਨਸਾਨ
ਜੋ ਭੀੜ ਦੇ ਵਿਚ ਖੜਾ ਉਮੀਦ ਕਰ ਰਿਹਾ ਹੈਂ
ਓਹੀ ਬਰਫ ਦਾ ਆਦਮੀ ਜਿਦੇ ਚੇਹਰੇ ਤੇ ਸਵਾਲ ਹਨ ਪਰ ਕੋਈ ਭਾਵ ਨਹੀ
ਆਪਣੀ ਕੋਈ ਆਵਾਜ਼ ਨਹੀ ਜੋ ਗੁਮ ਹੋ ਗਈ ਹੈਂ |
ਮੇਰੇ ਕੋਲ ਆਪਣੇ ਕਮਜ਼ੋਰ ਹਥਾਂ ਤੇ ਆਪਣਾ ਦਰਦ ਵ੍ਖਾਉਂਦਾ ਵਿਲਕਦਾ ਹੈਂ
ਮੈਂ ਚੁਪਚਾਪ ਓਹਦੀਆ ਸਾਗਰ ਡੂੰਘੀਆਂ ਅਖਾਂ ਚੋ ਆਪਣੇ ਸਵਾਲ ਲਭਦਾ ਹਾਂ ....
ਆਪਣੇ ਜੇਬ੍ਹ ਵਿਚ ਹਥ ਮਾਰਿਆ ਤਾ ਮੇਰੀ ਜੇਬ੍ਹ ਖਾਲੀ ਸੀ
ਮੇਰੀ ਸਾਰੀ ਦੌਲਤ ਦੇ ਹਿੱਸੇ ਹੋ ਚੁੱਕੇ ਸੀ

ਮੈਂ ਅਖਾਂ ਖੋਲਦਾ ਹਾਂ ਤਾਂ ਬਰਫ ਦਾ ਆਦਮੀ ਪਿਘਲ ਜਾਂਦਾ ਹੈਂ |
ਤੇ ਜਿਵੇਂ ਬੋਲ ਰਿਹਾ ਹੋਵੇ - ਮੇਰੀ ਦੁਆ ਤੇਰੇ ਤੇ ਬੇਅਸਰ ਸੀ ਮੈਂ ਫਿਰ ਆਵਾਂਗਾ
ਫਿਰ ਮਿਲਾਂਗਾ ਮੰਦਿਰ ਦੀਆ ਪੌੜੀਆ ਵਿਚ ਸੂਰਜ ਦੀਆ ਚੜਦੀਆਂ ਕਿਰਨਾ ਵਿਚ
ਦੁਬਾਰਾ ਜਨਮ ਲੈ ਕੇ |


BLOG ਤੇ ਆਉਣ ਲਈ ਬਹੁਤ ਬਹੁਤ ਧੰਨਵਾਦ |

ਪੰਕਜ ਸ਼ਰਮਾ 
GOOGLE+ ਤੇ follow ਕਰਨ ਲਈ CLICK ਕਰੋ |




 ਪੰਕਜ ਸ਼ਰਮਾ

IMAGINATION



ਨਾ  ਕਰਨਾ  ਤੰਗ  ਤੈਨੂ ,
 ਨਾ  ਗ੍ਹੇੜੇ  ਲੋਉਣੇ ਆ ...
ਨਾ  ਹੀ  ਦਿਲ  ਦੀ  ਗਲ  ਲਿਖ ਕੇ ,
QISSEY ਪਾਉਣੇ ਆ ..

ਕਰਨਾ  ਇੰਤਜ਼ਾਰ  ਤੇਰਾ ,
ਤੇ  ਤੇਰੇ  ਦਿਲ  ਨੂ  ਵੇਖਣਾ  ਹੈ ,
ਸਵਾਦ   ਇੰਤਜ਼ਾਰ  ਦਾ  ਲੈਕੇ ,
ਨਿਘ  ਸਬਰ  ਦਾ  ਸੇਕਣਾ ਹੈ ..

ਮੈ ਹੋਇਆ ਦੇਸੀ  ਬਾਲਾ ,
ਤੇ  ਤੂੰ  DIGITAL INDIA ਵਾਂਗ  ਅਡਵਾਂਸ ਕੁੜੇ,
ਥੋੜਾ ਜਿਹਾ ਵਿਗੜਿਆ ,
ਪਰ  ਦਿਲ  ਦਾ ਪੂਰਾ  ਸਾਫ਼  ਕੁੜੇ ...

ਹੋਣਗੀਆਂ ਲਖਾਂ ਸੋਹਣੀਆ,
ਪਰ  ਦਿਲ  ਤੇਰੇ ਤੇ  ਆਇਆ  ਹੈ ,
ਛੱਡ ਕੇ ਦੁਨੀਆਦਾਰੀ ,
 ਮੁੰਡਾ ਫੇਰ ਜਿੱਦ ਤੇ ਆਇਆ ਹੈਂ ......

ਨਾ ਚਾਹੁਣਾ ਛੱਡੇ ਤੈਨੂ ,
ਨਾ ਛੱਡੇ ਹਕ਼ ਕੁੜੇ
ਤੇਰੇ  ਪਿਛੇ  ਸਬਰ  ਤੇ ਆਇਆ ,
ਤੂੰ  ਖੜ ਤੇ  ਤੱਕ  ਕੁੜੇ .

ਪੈਰ ਪੈਰ ਉੱਤੇ ਸੁੱਟ ਲਏ ਨੇ ਸ਼ਿਕਾਰੀਆ ਨੇ ਜਾਲ
ਤੂੰ  ਸੰਭਲ ਸੰਭਲ ਕੇ ਚਲ ਨੀ ...
ਜੇ ਮੈਨੂ ਨਾ ਆਇਆ ਪਿਆਰ ਕਰਨਾ ,
ਤਾ ਤੈਨੂ ਕਿਹੜਾ ਵੱਲ ਨੀ

ਮੇਰੀਆ ਸਧਰਾ ਕਰਨ ਤੇਰਾ ਮਨਪਰਚਾਵਾ ਜੀ "ਸੱਦਕੇ"
ਜਦੋ ਚਾਹੇ ਆ ਸੇਕ ਲਈ...
ਮੈਂ ਦਸਣਾ ਨਹੀਂ ਕਿਵੇ ਲਿਖਦਾ ਗਿਆ QISSEY ,
ਤੂੰ ਬਸ ਆ ਕੇ ਇਕ ਵਾਰੀ ਵੇਖ ਲਈ .....

ਮਈ 18 2015
੦੩: ੧੫

ਪੰਕਜ ਸ਼ਰਮਾ


ਖੁਸ਼ਬੂ

ਟੁੱਟ ਗਿਆ ਹੈਂ ਸੁਪਨਾ ਗੁਲਾਬ ਦੇ ਖਿੜੰਨ ਦਾ
ਖੁਸ਼ਬੂ ਦੇ ਮਹਿਕਣ ਦਾ
ਖੁਸ਼ਬੂ ਨੇ ਕੀ ਮਹਿਕਣਾ ਸੀ

ਗੁਲਾਬ ਨੇ ਕੀ ਖਿੜਨਾ ਸੀ

ਕਲੀ ਨੇ ਕੀ ਫੁੱਟਣਾ ਸੀ
ਬੁੱਟੇ ਨੇ ਕੀ ਉਗਣਾ ਸੀ

ਜੋ ਬੀਜ਼ ਸੀ ..

ਧਰਤੀ ਵਿਚ ਸੜ ਗਿਆ
ਟੁੱਟ ਗਿਆ ਹੈ ਸੁਫਨਾ
ਖੁਸ਼ਬੂ ਦਾ
ਗੁਲਾਬ ਦਾ ..
ਪਿਆਰ ਦਾ ..

ਗੁਲਾਬ ਦਿਲ ਦੀ ਮਿੱਟੀ ਵਿਚ ਉਗਦਾ ਹੈਂ

ਪਰ ਦਿਲ ਹਰ ਕਿਸੇ ਦੀ ਛਾਤੀ ਵਿਚ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦਾ
ਪਿਆਰ ਦਾ ਗੁਲਾਬ ਖੂਨ ਪੀਂਦਾ ਹੈਂ
ਪਰ ਖੂਨ ਹਰ ਕਿਸੇ ਦੇ ਦਿਲ ਵਿਚ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦਾ

ਪਥਰ ਵਿਚ ਕੁਝ  ਨਹੀਂ  ਉਗਦਾ

ਪਥਰ ਵਿਚ ਕੁਝ ਨਹੀਂ  ਖਿੜਦਾ
ਪਥਰ ਵਿਚ ਕੁਝ ਨਹੀਂ ਮਹਿਕਦਾ

ਟੁੱਟ ਗਿਆ ਸੁਫਨਾ ਗੁਲਾਬ ਦਾ ...

ਟੁੱਟ ਗਿਆ ਸੁਫਨਾ ਖੁਸ਼ਬੂ ਦਾ...
ਟੁੱਟ ਗਿਆ ਸੁਫਨਾ ਪਿਆਰ ਦਾ .....

ਪੰਕਜ ਸ਼ਰਮਾ




Friday, 18 December 2015

ਬਾਜ਼ੀ

ਹੁੰਦੀ ਖੇਡ ਤਾ ਦੱਸ ਦਿੰਦਾ
ਬਾਜ਼ੀ ਹਾਰੀ ਜਾਂ ਜਿੱਤੀ ਹੈਂ 
ਖੱਟਿਆ ਕੀ ਮੇਰੇ ਲੱਗ
ਆਖਿਆ ਜਾਂ ਲਿਖੈ ਕਿੱਸੇ
ਜਾਂ ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਖਰਾਬ ਕੀਤੀ ਹੈਂ

ਆਖੇ ਤਾਂ ਮੈਂ ਨਾ ਲਿਖਾਂ ਕੋਈ ਕਿੱਸਾ ਨਾਮ ਤੇਰੇ
ਸਮਝੇ ਤਾ ਕਹਾਣੀ ਨਹੀਂ ਤਾ ਹੱਡ ਬੀਤੀ ਹੈਂ
ਆਖਣ ਲੱਗੇ ਸਿਆਣੇ
ਭਲਾ ਕਾਗ਼ਜ਼ਾ ਦੇ ਫੁੱਲਾਂ ਨੇ ਵੀ
ਕੋਈ ਮਹਿਕ  ਦਿਤੀ ਹੈਂ

ਤੂੰ ਆਵੇ
ਬੁੱਲੀਆ ਚ ਹੱਸੇ
ਤੇ ਚੁਪਚਾਪ ਤੁਰ  ਜਾਵੇ
ਜਦੋ ਤੁਰ ਜਾਵੇ
ਸਿੱਤੇ ਬੁੱਲਾਂ ਵਿਚੋ ਖੋਰੇ
ਕਿਹੜੀ ਬਦਦੁਆ ਦਿਤੀ ਹੈਂ

ਆਖਾਂ ਤਾ ਮੰਨ  ਲੈਣਾ
ਫੜ ਲਿਓ ਇਸ਼੍ਕ੍ਮ੍ਜ਼ਾਜ਼ੀ ਦਾ ਰਸਤਾ
ਹਾਰ ਬਾਜ਼ੀ ਸਿਧੇ ਸਿਧਰੇ ਨੇ
ਇਸਕ ਹਕੀਕੀ ਬਦਨਾਮ ਕੀਤੀ ਹੈਂ

ਕਢਾ ਜੇ ਨੁਕਸ ਆਪਣੇ ਵਿਚ ਵੀ ਕੋਈ
ਆਖ ਕੇ ਰੂਹ ਦੇ ਰਿਸ਼ਤੇ ਨੂ " ਬਾਜ਼ੀ "
ਮੈਂ ਮਿੱਟੀ ਪਲੀਤੀ ਹੈਂ  
ਹੁਣ ਲਿਖਣੇ ਨੇ ਗੁਨਾਹਗਾਰ ਨੇ ਕਿੱਸੇ
ਜਿਨੀ ਵੀ ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਰੱਬ  ਉਧਾਰ ਦਿਤੀ ਹੈਂ

 पंकज शर्मा -

Wednesday, 16 December 2015

AKS " अक्स "





अक्स



अँधेरे में परछाईयों से वक़्त मापता ....

बड़े से शहर में मुसाफिर लापता .....

गलत हूँ सही नहीं

सामने हूँ वही नहीं

उलझन हूँ सुलझाता नहीं

रास्ता हूँ बताता नहीं

नाम नहीं

घर नहीं
चेहरा नहीं

मेरे अंदर भी नही

मेरे बाहर भी नहीं

आगे भी हैं

पीछे भी है

हँसता नहीं

बोलता नही

नाचो तो नाचता है

भागो तो भागता है

पूछो तो कहे मैं यही

पास जाओ तो है नहीं

कोई बुझारत है

नहीं शरारत हैं

कौन हैं कोई जानता नहीं

किसे दिखाऊ कोई मानता नहीं

अदाकार हैं कोई

नहीं फनकार हैं कोई

चलो तो चलता है

आता जब कोई आग उगलता हैं

हमसफ़र भी है

मुसाफिर भी हैं

कौन हो तुम ?

बोला-तुम में तुम

पूछा क्यों सताते हो ?

-हँसा -खुद से बतलाते हो

बताओ ढूंढते हो किसको ?

-ढूंढते हैं आप जिसको ...

हाथ से मेरे मरोगे !!!

-नहीं खुदखुशी करोगे

क्यों तड़पते को और सताते हो !

-चलता हूँ तो आगे पीछे नज़र आते हो

क्या खता हैं मेरी

-मंज़िल तेरी

वो रूह हैं मेरी

-ये खता तेरी

कौन हो  , मुझे कैसे जानते हो ?

-मैं हूँ अक्स तेरा मुझे नहीं पहचानते हो |

ढूंढते रहे जिसे तुम

कभी नज़रो में
कभी पत्थरों में

तुम सफर में थे ...

मैं हमसफ़र था

जब भी होते तन्हा तो आता कुछ कहने के लिए ...

तुम घिरे होते बादलो में रहने के लिए ...

कभी लफ्ज़ बनकर

आइना बनकर
शिकारे पर पानी की बूँद बनकर
कभी उसकी आँखों में 
कभी तुम्हारे उड़ते ख्वाबो में
तुम्हे एहसास दिलाता वो पेड से उखड़ा पत्ता बनकर
आज मैं दस्तबरदार  होता हूँ ...

तुम्हारे जिस्म के सिवाए मेरे पास कोई घर न था

तुम ही थे जो मेरी डूबती ज़िन्दगी को बचा सकते .....

मैं तुम्हारी जिम्मेदारी वापस लेता हूँ ...

मैंने तुम्हारे लिए एक पेड के नीचे
जमीन और मिटटी खरीद रखी हैं
तुम्हे ज़िन्दगी भर जमीन नहीं मिली
पानी पर घर बसाये माधवभद्र थे
अब चलता हूँ
मुझे माफ़ करना



 पंकज शर्मा -

४:४४

Thursday, 10 December 2015

TOH FIR ..........



तो फिर ...... 

मैंने पता बदल लिया हैं गलियो और शहरों के नाम बदल गए हैं
यहाँ  फूलो की दीवारे हैं . जिन पे न कोई वक़्त की सुइयां हैं |
इस घर को मैंने अपने हाथो से लफ्ज़ से लफ्ज़ मिला कर बनाया हैं |
इसे बनाया हैं कुछ मेरे किरदारों ने ...

हार जाता हूँ , टूट जाता  हूँ तो इस घर में चला आता हूँ ..
यहाँ तक आने के लिए न सड़कें  हैं ....
यहाँ तक आने के लिए जो हमसफ़र मेरे साथ आती हैं ..
उसका कोई नाम नहीं
कोई वज़ूद नहीं
मज़हब नहीं ... फिर भी उसे कई नाम दे रखे हैं |

अजीब सा रिश्ता हैं , कब बना ?
पहली बार देखा तब ..??
 या  शायद पता नहीं .. ये रिश्ता सिर्फ इसी के साथ हैं

इस घर से सब कुछ साफ़ दिखता हैं .. नीला आसमान जब झपकी लेता हैं
सर्द रात में जब ओस में सब कुछ मधम पड़ जाता हैं
बादलो में सिर्फ अकेला चाँद और जमीन जब  गुमसुम होती हैं
और तब मेरी रूह खुश होती जब आसमान की धड़कने साफ़ सुनाई देती हैं ..
हवाओं में नमी . मौसम की नमी
ये बदला मौसम उसके चेहरे पे एक तिरछी से हंसी |
मैं कहूँ - "तुम्हारी उस हंसी से बेहतर कुछ नहीं , कीमती कुछ नहीं ?? "

वो कहे -" वो  बारिश .."
वो सामने जो बारिश जो आसमान से बरसती हैं
पहाड़ो से बहती ,नदिया नालो में चलती झील सागर में मिलती हैं
वो बरिस्ता का पानी आकर घर के सामने नीली झील में ठहरता हैं |

आसमान से गिरती ये मोतियों जैसी बूँदें घर के वरांडे में गिरती हैं ...
तुम्हारा मेरा हाथ थाम भीगने की ज़िद्द ..
शायद उस से बेहतर कुछ नहीं ..

आसमान में मोती जब तुम पे पड़ते हैं
ये मोतीनुमा बारिश मानो तुम्हारे साथ  खुद हंसती हैं

तभी जब आमान को अपना चेहरा दिखाया तो साया ढल जाए  |
तुम्हे देखते देखते बारिश रुक्क जाती हैं ....
सूरज की किरणे आसमान से दस्तक देने के लिए ... जमीन पर जैसे उतरती हैं .

तो तुम  मेरे घर को सुन्ना कर चली जाती हो ...
तुम्हारे साथ होने से बेहतर और कुछ नहीं .. बेशकीमती साथ टूट जाता हैं
 तो लगता हैं साँस लेते रहना भी तो सिर्फ ज़िन्दगी नहीं ..
जहाँ कुछ न हो ...वहां उम्मीद होती हैं |
अगर हज़ार बार भी  यही  ज़िन्दगी  हो  तो  ख्वाइश  यही  होगी  थोड़ा  और  तेरे  साथ  ज़ी  सकते |

फिर अगली बार वादे के साथ उस घर को छोड़ मैं भी चला आता हूँ
इन रवायतें के बीच |

जहाँ पर मेरी पहचान पूछी जाती हैं  | पहरावे से किरदारों को छाँटा जाता हैं | मेरे नाम से मेरे मज़हब को पहचाना जाता हैं | जहाँ साथ साथ कदम से कदम मिला कर चलने के लिए मोहलत और रस्में रिवायतें की जाती हैं |

इन पथरो के घरो में साँस नहीं आती ..
मकान बहुत हैं लेकिन वैसा घर नहीं यहाँ  बारिश होने पर सब कुछ थम जाता हैं |
साथ  मोहब्बत  , शर्तें  , वादे  , फ़र्ज़  . हसरतें  ......
एक  सिरा  कहाँ  मिलता  हैं  ज़िन्दगी  का
 ..यहाँ  तो  सिर्फ  ये  कहा  जाता है  के  लकीरें  बदला  नहीं  करती  ..
एक  टकटकी  लगी  होती  हैं  उम्मेंदो  से  , भरोसो  से  , दिलासो  से  , सहारो  से  .
एहसास  सिर्फ  तारीखें  बदलने  से  नहीं  बदलते .....
हसरतें  राख  होती  है कुछ किताबो से   ..

हाथो से हाथ यूँ ही नहीं टकराते . नाम जान कर रिश्ते बनते हैं ,

खुद को यहाँ बताना , जब मैं यहाँ हूँ नहीं तो फिर क्या रहना यहाँ ...|
काली सियाही दुनिया के पार उस घर से नीले बादल अच्छे हैं

तो पहुँचता हूँ फिर से ....अब से मैं उस घर में सदा हूँ ,
उसी घर में जिसे हमने बनाया हैं लफ्ज़ो की दौलत से और काल्पनिक किरदारों से |
तुम चले  आना  मेरे पते की  और तो  …यहाँ मज़हबी नाम  की दीवारे नहीं होंगी | ..
इस  नए घर  में  लिबास  देख  कर  लोगो  के  नाम नहीं  पूछे जाते  हैं  …
अगर कोई पूछे तो कहना  --
 तुम ____ हो ..

मैं  लेने  आऊंगा ..तुझे दरवाजे पर इस बार  ..
तेरे  वहां  पहुँचने  से  पहले  ..
देखना  तुम  भीड़  में  …
उसी  जगह  पर  आकर  रुकना  …
जहाँ  पहली  बार  फिर  मिले  थे …
देखना  हमारी  दोस्त  बारिश  भी  होगी …..

उस  भीड़  में  कोई  लगे  कोई  शकस  कोई  मुझ  सा  ..
तो  ये  मत  कहना  की - बहुत बदल  गए  हो |…..
मैंने  पता  बदला  होगा , किरदार  नहीं ….
तुम  बातें  सुनाना …
चलते चलते जब कदम से कदम साथ साथ चलेंगे  |

यहाँ उस मंदिर में भी जरूर चलना
बातें करते करते
उस माली को कहना - "फूल ताज़ा से दे "
और हँसते हुए कहना - " जिसकी खुशबू हमेशा तक रहे |

तुम  पूछना  की  - अब  ??
मेरा  ज़वाब  होगा   - तो चलो  फिर  ….
  ..
उस  छोटे  से  घर  में  ..
वादी  के  पार  …
जहाँ  पहुँचने  के  लिए  ना रिवायतों  की  और  न  ताकना  पड़े  …
जहाँ  न  सरकारों  की  नीली  मुहरों के  पंख  हो …
जहाँ पहुँचने के लिए न सड़के हैं न मोहरे लगती हैं न मुहरें  |

कुछ  हम  दोनों  हो  और  .
वो  बातैं  जो ..
आज  अधूरी  पूरी हो जाएँ वो बातें वो सारी ..

फिर  से  शुरू  करेंगे  ये  बातें  …
ये  qissey …
पर  आने  से  पहले
फिर  कहीं ये न  पूछना ??
अपने  आप  से  …

    वापसी  का वक़्त  कब  का  लिखूं  …….???

पंकज शर्मा

बहुत शुक्रिया वक़्त देने के लिए |




Friday, 4 December 2015

सड़क की ख्वाहिशें



अपने आप को मुसाफिर कहना अच्छा लगता हैं |

सड़को से ख़ास दोस्ती हैं |
ज़िन्दगी का  बेहतर मज़ा मेरी मानो तो फ्रंट सीट से ज्यादा आईने से बाहर देखने में हैं |
पहले जब भी देर रात कभी वापस लौटता था तो पैदल चलते चलते यूनिवर्सिटी तक पहुँचता |

अगर आप मेरी परिवर्ती के इंसान हैं तो रात को पैदल चल के देखे ...

जब कहीं पहुँचने की जल्दी न हो .... विश्वास मानिए . ज़िन्दगी और सड़कें और खूबसूरत लगेगी |
एक बंद कमरे के इलावा बाहरी लोगो से दोस्ती की बात करूँ तो एक बहुत अच्छी दोस्त हैं |
" एक  सड़क "

वर्चुअल दुनिया  से जब दूर जा के कहीं रुकता हूँ तो वो हैं ये एक सड़क |

जिसका एक अपना दर्द है
सड़क की अपनी कुछ ख्वाहिशें हैं |
इस  सड़क की अपनी एक दास्ताँ हैं |
ये शहर दुनिया  के व्यस्त शहरों में से एक शहर हैं ..
उसकी एक अपनी जुबान हैं -
दोस्ती अच्छी हो गयी थी  इस लिए उसके दर्द से अच्छी शिनाख्त सी हो गयी  |
जब कभी भी वहां से आता था.....
 तो रास्ते में एक  बगीचा आता और एक तरफ सूखा पुल
एक कला का मंदिर और एक पेड़ के नीचे छोटा सा मंदिर
सब कुछ सड़क के दो किनारो से जुड़ा वो रात का अक्स जिह्न में वैसे का वैसे  छुपा बैठा हैं |
सर्दी की रात  11 बजे की दूधिया रौशनी में धुली चमकती सड़कें
धीरे धीरे  फिर अपनी चुप्पी के रहस्य में डूबती हुईं .....
लोग घरों में बंद चुपचाप लेते चुस्कियाँ ...
और एक मैं और फिर कुछ बोलती सड़क ......

वो बोलती  मैं व्यस्त सड़को में से एक हूँ |

आराम का समय मेरे पास बहुत कम  होता हैं
साल हो गए हैं मुझे ठीक से सीए हुए |
मेरी नींद तक में बसीं होती हैं लपटे .. और चीखे |
मैं तो बेनाम हूँ ... मेरे माथे पे लोगो के नाम लिख दिए जाते हैं |
फिसलने के बाद सब हँसते हैं पर मैं नहीं ...
मेरे कन्धों पे कई मजहब और  पते लिख रखे हैं ..

दो दोस्त करीब से जब गुजरते हैं सुनती हों उनकी करीब से बातें ...

शायद ऐसा कोई दिन नहीं होता जब किसी का मुझमे कुचल जाने का इलज़ाम नहीं होता |
दो लडकिया गुज़रती हैं रोज़ मेरे पास से |
ऐसा कोई दिन हो जब कोई हड़बड़ी न हो
सोचती हूँ आज कोई पीछा न कर रहा होगा |
उनकी पोशाकें किसी मज़हब नामी या चरितर ढांचें का प्रमाण नहीं होंगी |
मेरे आस पास नेतवादी भूख हैं
उनका दिमाग मेरे चौराहो पर टिका होता हैं ..
जहाँ हत्या को दुर्घटना कह कर मुझे बदनाम किया जाता हैं
मेरे शहर के शबदकोष अपना अर्थ खो बैठे हैं |

सबकी मुश्किलें मैं सुनती हूँ ... सबका फिकराना हैं मुझे

कोई रिक्शा चलाता है
जब कोई भूख से मरता हैं  ..
सम्मान बेच कर -.....जब कोई अपना हाथ फैलाता है  
शहनाई कि गूंजः में कर्ज के लिए बिलबिलाता बाप है

तुम सब का क्या हैं -

सुनना तो मुझे पड़ता हैं |
तुम्हारा दर्द तो छोटा हैं शायद आज नहीं तो कोई और भर देगा  .....
तुम्हे तो बस कविताएं और कहानिया दिखती हैं ज़िन्दगी |

मेरा क्या -अपनी ठंडी छाती में तो उनको मैं सुलाती हूँ |

जब कोई कोख से उतार कर कोई नन्ही  मुझपे फेंक चलता हैं
उसकी रोती किलकारियाँ सुनती हूँ पूरी रात |
मुझे हर रोज़ उस सुबह की तलाश रहती हैं
जब ये सनाटा टूटे ....
भीड़ से खचाखच भोझ मुझ पे आन पड़े  ...
और फिर कोई चीर फाड़ करे ...|

मैं एक लम्बी छुट्टी पर जाना चाहती हूँ |

मेरी कुछ ख्वाहशें हैं - ख्वाहशें ऐसी हैं कि
जहाँ जा कर मेरे दोनों किनारे आपस में मिल सके .
जहाँ एक बड़ी सी झील हो .. और मैं वहां जा के थम सकूँ |
और शाम को जहाँ सूरज जब नहाने उतरे |
बस इतनी सी ख़्वाहिश हैं|

ये बात चीत और भी होती हैं |

उसकी सड़क की बातें आज भी थकान पैदा करती हैं |
जब भी सुनसान रास्तो से गुज़रता हूँ तो वो आवाज़ें आज भी याद आती हैं
सुनसान रातो में
सन्नाटो में आज भी ख़ामोशी नहीं मिलती |

हर बार कहता हूँ - मैं न तो लेखक हूँ

जो कह नहीं सकता हूँ बस  वो लिख देता हूँ |
लफ्ज़ो को पन्नो पर कुरेदना अच्छा लगता हैं ..
अच्छा लिखूंगा तो खोजने पर जल्दी मिल जाऊगा |
यहाँ नहीं तो ऊपर दिए हुए पते पर कहीं किसी रात को सड़क की ख़्वाहिशें सुनते हुए |

पंकज शर्मा

04 December 2015


22:52

ਚਿਖੋਵ

1892 ਵਿੱਚ, ਚੇਖੋਵ ਨੇ ਮਾਸਕੋ ਤੋਂ ਲਗਭਗ 50 ਮੀਲ ਦੂਰ, ਇੱਕ ਵੱਡੇ ਜੰਗਲੀ ਇਲਾਕੇ ਵਿੱਚ ਮੇਲਿਖੋਵੋ ਏਸਟੇਟ ਖਰੀਦਿਆ। ਜਿਵੇਂ ਹੀ ਉਹ ਉੱਥੇ ਪਹੁੰਚੇ, ਉਹ ਜੰਗਲ ਵਿੱਚ ਰਹਿਣ ਦ...