
इस बार बहुत लम्बा वक्फा हो गया है लिखे हुए |
कुछ तो लिखूं ...... मगर क्या लिखूं ... लिखते नहीं , बयां करते हैं...कुछ एहसास..अपनी नज़र से दिल में मुहब्बत उतारने वाले |
कोरे कागज़ और रुक-रुक कर चलने वाली कलम ..... आधी पढ़ी हुई किताब मुझे घूरते हुए :- जैसे तुम्हारी जुबान की बोली बोलने लगी -" तुम लिखते रहो क्यूंकि तुम्हारे लिखने से मुझे अपनी खबर मिलती हैं | तो सोचा इस बार क्यों न वो पहले पहले से एहसास लिखूं |
ये पहले एहसास ...... इनको देखने के लिए ये दुनियादारी का चश्मा उतारो और देखना के ये एहसास कितने खूबसूरत होते हैं | -जैसे किसी शहर की वो पुरानी सी गलियां , वो पुरानी सी सड़के , वो पुरानी सी आवारगी ......... और जुलाई महीने की बारिश में वो पेड़ो से बागी हुए गिरते वो पत्ते इस सब पुराने से वक़्त को और भी खूबसूरत सा बनाते हैं | जानते हो क्यों क्यूंकि पुराना ही वो "आईना" हैं .... जिसमें ताका-झांकी करते हम अपने आप को जी लेते हैं |
जुलाई महीना जाता जाता एक याद दे गया - वो जगह, वो पुरानी सी सड़को पर फिरते हुए पहली पहली बार लगा के शायद यही तो वो था - धुँधला सा 'ख्वाब' .... , बस बाघी सा महसूस किया .... उम्र कच्ची हो तो बगावत का भी दिल करता हैं ... मगर सच्चे एहसास से ज्यादा ख़ुशी और सब में कहाँ | एहसास हो तो सब कुछ यही है ....न हो तो कुछ भी तो नही है....|
लोग कहते हैं कि समझो तो खामोशियां भी बोलती हैं, मै बरसों से खामोश हूं और तुम बरसों से बेखबर.. पर ये भी तो एक एहसास था |... जब एक बार देखा था,मेरी तरफ मुस्कुराते हुए, बस एक वो शाम थी मानो वो हकीकत थी , उस लम्हे के बाद जितने लम्हे आये बाकी सब किस्से ही तो थे !!
अजीब से किस्से है जिंदगी के तेरे- मेरे......... किसी में मैं नही... और किसी में तू नही...
तुम्हारी एक बात और याद आती हैं - ये ऊपरवाला भी हमारे साथ अजीब तरह के खेल खेलता है ...हम सब को मिलवाता हैं , फिर वो एक को दुसरे से प्यार करवाता है , तो फिर दुसरे को तीसरे से , और तीसरे को किसी और से | वैसे लोग मानते नहीं हैं मगर मैं मानता हूँ - प्यार बहुत बार हो जाता है ... लेकिन मोहब्बत सिर्फ एक बार होती है |
रिश्ते और मुलाकाते सच्ची हो तो वहां अल्फाज़ से ज्यादा एहसास की एहमियत होती है। फिर वही बात फिर कहता हूँ - यु हज़ार बार भी टूटे या रूठे …मना लूँगा तुझे …..मगर देख तेरे और मेरे बीच शामिल कोई दूसरा ना हो .|
बात जब एहसास की हो तो लफ्ज़ मायने नहीं रखते | किसी की मौजूदगी में भी सवाल जवाब मिल जाते हैं | ज़िन्दगी की बे-अल्फ़ाज़ी खामोशियाँ... और न सोचे समझे , न नपे तुले से "एहसास" ... लिखने को मन करता है | वैसे मैं तो हर बार इसी एहसास का ज़िक्र अपनी बातो में करता हूँ , पर खुशकिस्मत हूँ तुम औरो की तरह अलफ़ाज़ नहीं ..एहसास पढने में माहिर हो |
जज्बातों और एहसासों के बाज़ार में खरीदने लायक कुछ नहीं मिलता...
पर वक़्त की दहलीज़ का उसूल है...
शायद अगर एक दिन वापस मुड़कर देखोगे -
जगह भी वही होगी पर उस जगह पर 2 नए चेहरे चाय पीते जिंदगी को आंक रहे होंगे |
...अब देखो कितना दूर जा पाते है ,
कोशिश यही है की खुद से चल रही इस जद्द-ओ-जेहेद के बाद खुद को पा सके |
चाहता हूँ मेरे आस पास इन उडते हुए सवालों को मुट्ठी में कैद करना ....
पर नहीं दुनिया करे सवाल तो हम क्या जवाब दें
तुमको न हो ख़याल तो हम क्या जवाब दें......|
जी तो चाहता है बहुत- " इन एहसासो को अँधेरे में छुपा लूँ, . . मगर ना ''वक्त'' ने इज़ाज़त दी और ना कभी ''तुम'' ने ||
तुम्हारे ही लफ्ज़ थे -किस्मत के आगे किसी की नही चलती, लेकिन " आँखों के सामने कोई भी हो महसूस तो वही होता है , जो रूह में समाया हो |"
पर ये एहसास का खेल भी दिलचस्प है - कभी पल, कभी पल- पल और कभी कभी हर पल......|
तुम्हारा आ के जाने का एहसास भी वैसे होता है जैसे तुम्हारे लिए "रविवार की शाम हो .....
" अरमान , ख्वाहिशें, ख्वाब ,आरज़ू.,ज़िद्दी दिल, .. कुछ ज़िद्दी, हम भी है..!!!!!
कितना मुशकिल है उस शक्श को मनाना ।। जो रूठा भी ना हो और बात भी ना करे...
पर जब तक इंसान हारता नहीं है , वो जीता हुआ रहता हैं ....|
तो एहसास तो और भी हैं पर जिक्र जब तेरा हो .....बातें लम्बी हो जाती है |
अब इन एहसासो को अधूरा रख के कहता हूँ -जिक्र तेरा अच्छा लगता है |
कुछ हम अधूरे...वो लम्हे अधूरे...वो सवाल अधूरे...वो जवाब अधूरे... वो ख्वाब भी अधूरे |
..... तो जाते जाते कहता हूँ -
"जो कह दिया वो बात थी.... जो रुक गए वो एहसास थे |"
QISSEY
~पंकज शर्मा~
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