Tuesday, 22 December 2015

tamaasha ही तो हैं



Tamaasha ही तो हैं 







22 DECEMBER 2015
TIME -05:12 AM

GOOD MORNING

बहुत कम ऐसा होता हैं कि मैं जल्दी सो जाऊं और अलार्म से पहले उठ जाऊं |
ये आँखें जब भी कुछ अलग देख लेती  हैं तो फिर इनें चादर ओड के सोना पसंद नहीं |
उंगिलिया भी लफ्ज़ो से चुगलिया करने से नहीं रूकती |
माज़रा बस इतना सा  के इन्होने ने कल रात  को एक पागल को देख लिया |
फिर क्या था - तब से उंगलिया डिब्बे खोलने कि ज़िद्द किये जा रही थी कि डिब्बे से कुछ देर के लिए फुसफसाना हैं |
उस पागल वेद के बारे में बताना हैं |
उसे एक भयंकर बिमारी हैं |
आपके शहर गाँव में इसका कोई होर्डिंग नहीं लगा होगा |
न हे कोई कलाकार इसका विज्ञापन करता होगा |
जिसे भी ये बीमारी समझ आती होगी वो किसी नीम हकीम कि सलाह देता होगा |
या फिर किसी मनोविज्ञानिक की |
यहीं एक बीमारी हैं " identity crisis " जिसे Multiple Personality Disorder भी बोल सकते हैं |
कहते हैं इंसान लिबास बदल सकता हैं किरदार नहीं |
एक वो किरदार जो 9 साल की उम्र में समाज के दायरों में से कहानियो में प्रवेश होता हैं |
दूसरा हिस्सा कॉलेज पास झूठ की ज़िन्दगी मानो उड़ता परिंदा |
तीसरा वो जो काम्प्रमाइज़ करते हुए चलने वाला |

अगर आप सत्यवादी हैं तो शायद इसे न माने |
समझदार लोग समझते हैं कि सच वही होता हैं जो दीखता हैं |
सच ढूंढते ढूंढते उम्र के अलग अलग  हिस्सों से गुज़र जाते हैं |
स्कूल में टॉप न सही पास भी होते हैं |
कॉलेज में से नौकरी न सही डिग्री ले के निकलते  हैं |
ढूंढते ढूंढते एक दिन वो बन जाते हैं जो बनता देखने के लिए उन्हें पैदा किया गया था |

कुछ किरदार कितने सच्चे होते हैं |
जब कहानीकार उसे रामायण सहित इतिहास व् दुनिया में चलती हर महाभारत का पाठ पढ़ाता है |
शायद कोई ही होगा जिसे बचपन में कहानियां सुन्ना पसंद न होगा |

कुछ देर बाद वेद को देखते देखते पता चलता हैं |
शक्लें बदल रही हैं , वक़्त गुज़र रहा हैं , जिम्मेदारियां का बोझ बढ़ता जा रहा हैं |
पर सब के अंदर एक वेद हैं जो उसे कभी बढ़ा नहीं होने देता |
जो सारे सवाल पूछना चाहता हैं
नकली क्या हैं असली क्या हैं |
कल्पना की हैं ????
जानना चाहा है ???

आसमां है नीला क्यूँ, पानी गिला गिला क्यूँ
गोल क्यों है ज़मीन
बहती क्यूँ है हर नदी, होती क्या है रोशनी
बर्फ गिरती है क्यूँ
सन्नाटा सुनाई नहीं देता, और हवाएं दिखायी नहीं देती
 क्या कभी, होता है ये क्यूँ |
अगर ऐसे तज़ुर्बे बाकी हैं
तो सब ठीक हैं
अगर दिल बार बार सवाल करना भूल गया है
तो सब ठीक हैं

ज़िन्दगी अगर सब कुछ मिल जाने से आराम से गुज़र सकती |
शायद ये दिल भी उम्र के साथ बड़ा हो सकता |
कुछ तज़ुर्बे  अभी भी बाकि है,
जो की सिर्फ सपनो में गीले हैं
जैसे की ये सपना मुझे बार आता हैं ,
की मैं हवा में उड़ रहा हूँ,
परिंदे  के जैसे,
जानता हूँ
 ये सपना नहीं है
ये  ज़िन्दगी ये लफ्ज़ कल्पना नहीं हैं
ये वास्तविकता है,
ये हवा जो मेरे चहरे को चूम रही है,
ये सांय सांय की आवाज मेरे कानो में,
ये यथार्थ है, सच है,
मै सच में
आसमान को चीरता चला जा रहा हूँ,
चला जा रहा हूँ,
कभी रुकते
कभी उड़ते
जानता हूँ समझदारी नहीं हैं
लफ्ज़ो की धोखेबाज़ी हैं
ये सपना नहीं है
मैं उड़ रहा हूँ,
मैं उड़ रहा हूँ।

उड़ते उड़ते अतीत  से वो सारे क़िस्से नामी खज़ाने को ढूंढना हैं जो हमसे छीन के वक़्त की ऊँगली पकड़ा हमें चलता किया गया और कहा गया के समझदार इस खज़ाने का क्या करेंगे |
लेकिन अपना अतीत साथ ले के चलना हैं |
नए साल में बहुत से रंग ढूंढने हैं |
जानता हूँ वो Qissey कहानियाँ काल्पनिकता के परे है?
पर आप ध्यान से हर एक किरदार को पढ़ते रहिएगा  उसमे आपको आपका बिता हुआ कल दिखाई देगा।

आप सभी का स्वागत है मेरी नईं क़िस्सो की महफ़िल में
उम्मीद करता हूँ की यहाँ बिताया हर एक पल आपकी जिंदगी में  खुशी लेकर आएगा।

आपका प्यारा तो नहीं
चाहता भी नहीं हूँ
नसमझदार हूँ
लिखने में अनाड़ी भी हूँ |
पर लेखक नहीं हूँ |
क़िस्से अब ज़िन्दगी का हिस्सा हो गए हैं बिना कल्पना के ज़िन्दगी अधूरी सी लगती हैं
क्यूंकि मेरी बातें  अक्सर यथार्थ व कल्पना का मिश्रण व प्रतिबिम्ब होती हैं और ये आवश्यक नहीं कि वो मेरी व्यक्तिगत जीवन की घटनायें ही हों | हमारे साथियो की तरह आप भी हमें - लेखक, विचारक , ब्लॉगर , क़ाबिल बेरोज़गार, भारतीय, सीधा साधा ,बातूनी , चंट, चालाक ,चटपटा, चटोरा ,पागल कह सकते हैं ...|
एक बार qissey पढ़कर देखिये बाकी मर्जी के मालिक आप है |

पंकज शर्मा 

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