किसी ने पूछा - ज़िन्दगी को क्या समझते हो |
ज़िन्दगी- सफर , उम्मीद , इंतज़ार , तलाश , चाहत और हिम्मत "
शायद "ज़िन्दगी"
इसी को कहते है और समझते है |
जिन्दगी तो हैं एक सफर , इस सफर में रास्ते ढूढ़ता मुसाफिर "हमसफ़र" को मिलता हैं |
जब रास्ते एक हो तो मुसाफिर दोस्त बन जाते है
और जब ख्याल और मंज़िलें एक हो तो हो जाते हैं "हमसफ़र |
अभी तक ख्याल , ख़्वाब , आदत , उम्मीद ,जवाब बारिश ,एहसास लिखा |
क्यों लिखता हूँ -? -बस यूँ ही लिखता हूँ ..
वजह क्या होगी ..??- राहत ज़रा सी .. आदत ज़रा सी ..!!
क्योंकि ये आदत मुझे अच्छी लगती है ...
बुरा लगता है ... तो नहीं लिखूंगा |
मेरे लफ्ज़ो से बुरा लगे तो बता देना.. मैं लिखता हूँ तुम्हारी हस्सी के लिए , लफ्ज़ो में छुप्पी दास्ताँ बताने के लिए लिखता हूँ ..... पर जब आँखों में मोती मेरी वजह से आये तो ... लगता हैं जैसे गुनाह कर दिया |
कुछ हमसफ़र जिंदगी में ऐसे भी मिलते है जिनसे कभी ना टूटने वाला रिश्ता बन जाता है जैसे हमसफ़र तुम मिले |
सफर चाहे सड़को पे हो या फिर इस वर्चुअल दुनिया में कभी कभी ऐसे हमसफ़र बन जाते है जिनसे बार बार बात करने का मन करता है जबकी दिमाग जानता है की सब मिथ्या है पर दिल नही मानता|
भूल जाता हूँ ....मुसाफिर हूँ... मंज़िले कुछ और है .... हर सफर तनहा पसंद है.... रास्ते में कोई हमसफ़र मिल गया , तो मंज़िल समझ बैठा |
और QISSEY नहीं हैं सिर्फ .. तजुर्बे है और कुछ भी नहीं, सोचता हूँ की शायद कोई तो संभल
जाएगा मेरे QISSEY पढने के बाद.....
जो बोल न पाया लिख दिया ,कोई बात मन में न रहे | मन की बात सोचता हूँ ....तुम्हे अच्छा लगता होगा इसलिए लिखता हूँ.. वरना कलम से मेरी कोई खास दोस्ती नहीं थी पहले |
एक रोज़ तुमने पूछा था एक सवाल के लोगो को कैसे भुला जा सकता हैं - आज मैं वो हुनर तुमसे सीखना चाहता हूँ ....मुझे भी सिखा दो "भूल" जाने का हुनर मैं भी थक गया हूँ हर लम्हा लम्हा रास्तो में , हर सांस हमसफ़र को याद करते करते !!
बहुत से सवाल आज ही सुलझाते हैं -
इंसान अपने ऑप्शन खुद चुनता है... फिज़ूल जो तक़दीर को कोसते फिरते हैं... कायर होते हैं.. हम ख्वाब देखते हैं ..तुम भी तो देखती हो ..ढूंढती हो मेरे किरदारों में अपने आप को .... और इन कहानियों के नायक हम खुद ही होते हैं... ये कहानियाँ अलग-अलग एक साथ जीते है|
एक बात और तय है, हम कितना भी कोशिश कर लें... डोर का एक सिरा हमारा किसी और के हाथो में होता है |
आग के लिए जैसे पानी का डर बने रहना ज़रूरी है, वैसे ही ज़िंदगी में हमेशा एक सर्प्राइज़ एलिमेंट रहना लाज़मी है..
हर चाही चीज़ मिल नहीं जाती... हर नापसंद चीज़ से छुटकारा नहीं मिल पाता. सिर्फ पा लेना ही काफी नहीं होता और खो देना अंत नहीं होता. अमृता-इमरोज़ हम सभी में है, किसी न किसी रूप में...
देर है तो बस पहचानने की. कस्टम्स, रीतियों और रवायतों को बिना ताक़ पे रखे कैसे जिया जाता है|
हसरते बदलने लगी है....
ये हसरतें और तुम्हारा ख़्वाब.. सब कुछ मिटता बनता है दिन भर में कई बार....
बदलती फ़ितरतें अक्सर हसरतें बदल देती हैं...और
नजरें सब बता देती है ... नफ़रतें भी....हसरतें भी !!
शायद वो कल न आ सके .... वो रात भी न लौट सके ... और न शायद ये दिन बदले ,बदलती हैं बस कैलेंडर की तारीखें,बदलती इंसान की फ़ितरतें ..
और एक न एक दिन फ़ितरते भी मरती हैं... हसरते भी मरती है और सपने भी मरते हैं..|
चाहे ढाई अक्षर न सही पर रिश्ते और भी है....
दुनियादारी रखो या यारी ... पर फर्ज़िनामा नहीं |
और ये चश्मेदार लोगो को कहना हैं -दुनियादारी की चादर ओढ़ के बैठे हैं ... इसलिए चुप हूँ.. लेकिन जिस दिन दिमाग का पारा गर्म हुआ इतिहास तो इतिहास ही रखेंगे ,पर भूगोल जरूर बदल देंगे |
एक बात जो जुबान पे आ के हमेशा रूकती हैं आखिर क्यों न करे मोहब्बत .... तुम्हारे नखरों की तरह हैं-- तुम्हारी अदाएं भी.... ज़िद्दी भी और हसीन भी.....
कहते हो बात करना छोड़ दो ऐसी अदाएं न सरे बज़ार मिलेगी न उधार मिलेगी |
वक़्त और रिश्ते मुठी में पढ़ी रेत की तरह होते है ..जोर से जकड़ो तो फिसल ही जाते हैं |
कितनी छोटी सी दुनिया है मेरी, एक मै हूँ और एक दोस्ती तेरी |
फितरत से आदत हुई और आदत से इबादत और मुसाफिर ...... अब !!!!
हमसफ़र ........... - अजीब से , कहीं हम नहीं , कहीं वो नहीं, उसे रास्ते का पता नहीं , मुझे मंज़िलों की खबर नहीं.....!!
चलो फिर वही रास्ते, फिर वही जुनून, फिर वही हमसफ़र, फिर वही हम |
चलो निकलते है इस बार हम अकेले सफर पे ... वो बिल्कुल सामने तेरी दुनिया में जिसे तुम ख्वाब कहते हो ----- मेरे हमसफ़र |
| पंकज शर्मा |
http://pankajsharmaqissey.blogspot.in/