तारीख- २१ अगस्त २०१५
सुना हैं बाहार का मौसम बीत चूका हैं .... मगर बारिश तो अब भी होती हैं |
कुछ भी तो नहीं बदला हैं ..
मौसम ही तो सिर्फ बदला हैं ..
अब भी बारिश में वो हवाओ का मिज़ाज़ वैसे का वैसे ही हैं --
एक अधूरी सी तस्वीर खड़ी हैं मेरी दीवार पे ..
कल आये तेज़ हवा के झोंके ने उस तस्वीर को तिरछा कर दिया |
मौसम तो पहले भी आ के बदल जाते थे ... पर इस बार ये दीवारे सिली सिली सी हुई लगती हैं ..
जाने क्यों इनपे सीलन सी पड़ गयी हैं , और कुछ दरारे सी भी पड़ गयी हैं |
हवा की सांस भी भरी भरी सी लगी जब जब ढलते सूरज के साथ एक बार फिर हवा चली थी ..
ये सांस सहमी सी लगी हैं ..पहले तो ये साँसे और बारिशे ऐसी न थी ...
गुनगुनाती थी .. हसाती थी ...
जब जब मेरे कमरे में आती थी |
पहले तो भी सब ऐसे ही था ...जैसे कि पहले तुम थी ...
दिन भी वैसे आँखे खोलता था .....
दोपहरें भी ख़ामोशी सी बोली बोलती थी ......
बाकी सब कुछ वैसे ही है ..जैसे कि पहले तुम थी ..
सब कुछ लगता हैं जैसे कि पहले लगती थी सर्द हवाएं .
शायद कुछ बदलता ... या भूक न लगती खाने की..
या प्यास न लगती पानी की ...
या बातें करना भूल जाते ....
या QISSEY लिखना रुक जाते ..
पहले तो भी सब ऐसे ही था ...जैसे कि पहले तुम थी..
बाकी सब कुछ वैसे ही हैं ...जैसे कि पहले तुम थी ...
बस एक वो तस्वीर तिरछी सी हो गयी हैं ..जो मेरे सामने कि दिवार पे थी ..
घर तो मेरा अपना हैं ......पर बाकी सब कुछ तरफदार सा नहीं ....
बाकी सब कुछ वैसे ही हैं ....जैसे कि पहले तुम थी ...
ख्यालो से रुस्वाइयां सी जब भी होती हैं तो एक दोस्त हैं मेरी .......
तो उसके ऊपर आसमानी रंग सा फेक कर बातें करता हूँ
सिर्फ लगता हैं कि एहसास हो तुम
सिर्फ एहसास कि नज़दीक हो तुम ..
सैकड़ो लोगो से घबराई हुई सी
अजनबी आँखों से शरमाई हुई ..
सैकड़ो जुल्फों से उलझायी हुई ..
सिर्फ एहसास हो तुम ...
या एक एहसास हो तुम
बाकी सब कुछ वैसे ही हैं ...जैसे कि पहले तुम थी |
दिन भी ऐसे वैसे गुज़रता हैं कोई..
जैसे कोई एहसान उतारता हैं कोई ...
.
छोटे छोटे मोतियों को देखता हूँ तो कुछ शक्लें जानी पहचानी सी लगती हैं ...
वैसे बेगाने से घर में काफी आईने हैं ....
आज भीड़ में कोई तुझसे मिला एक आइना सा ....
लग्गा इस घर में कोई जानता है कोई ...
इस कार्बन पेपर कि कागज़ पे बिखरी सिहायी से रातें पहले भी वैसे ही गुज़रती थी ..
बाकी सब कुछ वैसा ही है .... जैसा कि था ...जब पहले तुम थी |
पंकज शर्मा
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