Friday, 20 October 2017

Mr. बड़बड़ कुमार

सोचने का भी एक तरीका होता है , सोचना भी बहुत सी छोटी छोटी चीज़ों की तरह कोई नहीं सिखा सकता है ।
जैसे पिछले के बारे में सोच के हम उदास हो लेते है और आगे के बारे में भी ।
जो खुश रह पाते है वो कुछ होते है चलते वक़्त के साथ साथ जीते है ।
अंग्रेजी में जिसे लिव इन प्रेज़न्ट बोलते है ।
ऐसे ही एक व्यक्ति थे " बड़बड़ जी "
उम्र यही कोई 25 बरस ।
रंग-  साँवला
कद यही कोई  साढ़े पांच फीट
एक दम फुर्तीला इंसान , उसके अंदर ऐसी शक्ति कि मिट्टी को भी सोना कह के बेच दे ।
एक दम परफेक्ट सेल्समैन ।

दिवाली के साथ आते है भूले बिसरे दोस्तों के इनबॉक्स & व्हात्सप्प मैसज ।
सुबह माँ इससे पहले उठाये ।
फ़ोन की स्क्रीन पे फ़्लैश होते है ढ़ेरो फ़ोन कॉल्स और मैसेज । अपनी कमी कहूँ या बुरी आदत 
मुझे फ़ोन के general mode से गुरेज़ है ।
अक्सर फ़ोन को साइलेंट मोड पे ही रखा है ।
आलस कह ले या मजबूरी ।
मुझे इसकी टिंग टोंग की दख़ल बर्दाश्त नहीं होती ।
फ़ोन से शुरू से ही ख़ास दोस्ती नहीं है ।
ऐसा समझ लीझिये इसके साथ हमारी अरेंज मैरिज है ।
न ही मैं इसे कभी समझ पाया और न ही ज़रूरत को ।

कुछ साल पहले घर से एक जगह दूर कही नौकरी मिली थी । कंपनी के नियमो के अनुसार सैलरी अकाउंट किसी निजी बैंक में अनुवार्य था । सरकारी बैंक में खाता खुलवाना भी आफ़त है और प्राइवेट बैंक से पहले कभी सामना नहीं हुआ था  ।
मुझ जैसे इंसान को बैंक के नाम से खिन्न आती है । निजी बैंक में खाते की अहतियाज़ थी सो पहुँच गये बैंक में ।

ससुराल जाने पे जितनी ख़ातिरदारी जमाई राजा की होती है उसके लगभग ही प्राइवेट बैंक में ।
आदिल कुमार नामक एक सेल्समैन से मुलाकात हो गई ।
बातचीत का अंदाज़ उनका ऐसा था कि जैसे जो उन्होंने कह दिया सात वचन । जान पहचान में ही उन्होंने ने मेरे शहर से अपने 3-4 रिश्तेदार बता दिए । जिस दफ्तर में हमें नौकरी मिली थी वहाँ का हर व्यक्ति उनका दोस्त ।जिस व्यक्ति का नाम लेते उनका नंम्बर फोन डायरेक्टरी में से निकाल के दिखाते । एक दम बड़बड़ एक्सप्रेस ।

खाता खोलने के नाम पर सिर्फ हमारा आधार कार्ड लिया गया और कहा गया बाकी की सेवाएं आप घर बैठे प्राप्त कर पाएंगे आपको सिर्फ एक फोन मिलाना है - " आदिल कुमार की ये नवाज़िश थी या जॉब ???
मैने पुछा नहीं ।
मुझे ज्यादा मित्रता बनाना पसंद नहीं ।
मुझे अकेलापन नहीं एकांत अच्छा लगता है । किसी से बिन बात बतियाना अजीब भी लगता है ।
मैंने हैरानी परेशानी में अपना नँबर बड़बड़ कुमार को दे दिया ।

जिस तरह पहले भी जिक्र किया है ।
फोन से ख़ास दोस्ती नहीं है तो आप अंदाजा लगा सकते है कि मैं एक मिलनसार शख़्सियत नहीं हूँ , मगर मैं नाशुक्रा भी नहीं हूँ ।
बिलकुल इसके उल्ट थे "आदिल कुमार जी | "

"बड़बड़"  के नाम से उनका कांटेक्ट नाम फ़ोन में सेव कर लिया । तअज्जुब की बात ये थी कि आदिल कुमार का कोई निश्चित वक़्त नहीं था फ़ोन करने का ।
हर वक़्त बैंक की हर समस्या के सुझाव के लिए तैयार रहते । दिन में 2 बार माँ से बात करता हूँ उसके इलावा सिर्फ बड़बड़ कुमार जी थे जिन्हें मेरी चिंता होती ।
"पंडित जी मैं खाने पे बैठा था तो सोचा आप से भी पूछ लू आप शहर में नए है तो पूछ लू खाना वाना सही मिल रहा है न ??
कभी कभी दिल करता था बैंक में अकाउंट बंद करवा दूँ , डेबिट कार्ड की कोई समस्या हो या फिर किसी और employee की बैंक स्टेटमेंट ।

मेरे नाम से मेरे ही दफ्तर के लोगों को मेरे साथ पक्की दोस्ती बता कर बाकी employees का खाता भी अपने बैंक में खोलते  । उसके इलावा कोई क्रेडिट कार्ड ,कोई लोन मेरे नाम से चिपकाते । परफेक्ट सेल्जमैन।

आदिल कुमार जी थे एक अच्छे सेल्समैन ।
मेरा तबादला कुछ ही ..दिनों में हो गया ।
नाम बड़बड़ नाम से वैसे के वैसे ही सेव था ।
मेरी आदत भी वैसे के वैसे ही थी फ़ोन न उठाने की ।
4 साल तक हर दिवाली , होली पे मैसेज आता ।
कभी कभी फ़ोन भी आता और बड़बड़ कुमार बताते के

उनकी भी प्रोमशन हो गयी है 50 खाते और 20 क्रेडिट पे बैंक ने उन्हें नया मोटरसाइकिल दिया है ।
मुझे बड़बड़ में एक न ही दोस्त दिखता
और न ही कोई हमदर्द । वो सिर्फ एक मशीन था ।
जिसे सिर्फ काम करना है उसकी भी भला कोई ज़िन्दगी ।
हर किसी को कस्टमर की नज़र से देखने वाले शख़्स।

मुझे बड़बड़ जैसे लोग बड़े अजीब लगते है ।
हमेशा हैरान होता हूँ - कैसे सिर्फ दिमाग से ही जी लेते है ।
सालो तक बड़बड़ का मैसेज हर दिन त्यौहार पे आता न ही मैं कोई दिलचस्पी दिखाता ... मगर वो साल दर साल शुभकामनाये भेजता और मै दिनों बाद देखता और डिलीट करता ।
रिप्लाई में थोड़ी बहुत दिलचस्पी दिखा लेता ।

अब एक साल से बड़बड़ का कोई संदेश नहीं कोई खबरसार नहीं सोचा शायद वो भी सोचता होगा कि क्या फायदा जब कोई आगे से जवाब न दे ।
इस साल मुझे अपना खाता बंद करवाना था ।
कही से नंम्बर ढूंढा  , डायल किया मगर कोई जवाब नहीं मिला ।
ऐसे ही होते है सेल्समैन जहाँ इनकी कोई सेल नहीं वहाँ काहे की सर्विस । सौ गालिया बकी की साला जब काम नहीं था तो दस दस फ़ोन मगर आज जरूरत है तो कोई जवाब ही नहीं ।

वक़्त निकाला और पी. एफ़ क्लियर करने के बाद उसी ब्रांच पंहुचा और खाता बंद करवाने की अर्जी डाली ।

ब्रांच मैनेजर से सीधा शिकायत रख दी
देखिये मैनेजर साहब काम के वक़्त फ़ोन क्यों नहीं उठाते आप लोग ?
मैनेजर साहब ने बताया बाकी के सेल्समैन न ही किसी को फ़ोन करते है और न ही खुद किसी को करने देते है । ये आदिल कुमार के शुरू किये हुए ट्रेंड थे । सारा बैंक अपने कंधो पे उठा रखा था ।
लेकिन जरूरत के वक़्त फ़ोन तो उठाना चाहिए न मैनेजर साहब ।
मैंने पूछा तो अब कहाँ है वो ?

मैनेजर बोला - न्यू ईयर की रात  को सड़क हादसे में मर गया । शराब पीने की लत्त थी ।

पसीना पोंछते पोंछते मैं बैंक से बाहर निकला और घर आ कर फ़ोन को general mode पे कर दिया ।
हर एक शुभकामना ज़िन्दगी के मायने बदलती है ।
ये दुनिया प्यार से चलती है ।

मैसेज और फ़ोन कॉल कोई भी हो अब रिप्लाई जरूर करता हूँ ।

पंकज शर्मा

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Friday, 13 October 2017

शायद .... वो बात

​वो वो न रही 

मैं मैं न रहा

बरसों बाद की है मुलाकात

उलझन भरी है अंखईओ में

बदले बदले से है चेहरे 

कहीं कुछ तेरे , 

कुछ मेरे 

वो बात न रही .....


जुबां भी बदली

अंदाज़ भी बदले

वो हाऊ आर यू ? (hw's you )?

आई एम फाइन । (Am fine)

पूछने के बाद 

नहीं शुरू हुए 

वों किस्से

कहने सुनने और पूछने में .......

वो बात न रही 

शायद अब हाथों से नहीं

चमच से लगता है 

 राज़मा चावलों का स्वाद उसको..

बिन बातों के 

कैसा अच्छा लगता है

खाने का स्वाद उसको

आमने सामने ख़ामोशी में..........

वो बात न रही ...


कितनी खनकदार थी 

हँसी उसकी

ये भी न था 

शायद याद उसको

शायद मेरे कुछ कहने

उसके हँसने

अब की हँसी मुस्कराहटों में

वो बात न रही ...

नाम बदला

शहर बदला

क्या था जो नहीं बदला

पुकारे तुम्हारा सा कोई नाम

याद है एक पुराना

मेरा एक पासवर्ड जो था

तेरे नाम के बाद मेरा नाम

दो नामों के बीच  ......

वो बात न रही 

मेरे घर से तेरी और आना

तेरा अपने घर से मेरी और आना

वो एक जगह अब भी वही है

अब चुपचाप गुज़र जाते है

रोज़ तो मिलते है

पर इन मुलाक़ातों में

वो बात न रही

वही तुम हो 

वही मैं हूँ

वही शहर है 

वही ठंड की बरसात है

वही हम है 

वही तुम हो

वही ख्यालात है

कुछ तेरे अंदर 

कुछ मेरे अंदर

शायद........

 वो बात न रही

Pankaj sharma

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Sunday, 8 October 2017

इबादत

मैं कभी भी कोई बैंक कर्मचारी नहीं बनना चाहता हूँ ..
न ही खाने पीने की चीजों की बिक्री करने वाला ...
न ही विदेशी कंपनियों का सेल्समैन...
न ही कोई संघी
न ही हुड़दंगी
न किसी पार्टी का मुखिया
और न ही कोई टैक्सी ड्राइवर
न ही इधर उधर फुदकता सुपरहीरो
मैं तो चाहता था बस उसे देख स्कू
बस इतना चाहता था
शहर की सबसे ऊंची जगह पे खड़ा हो के
नीचे घनी इमारतों के बीच
उस लड़की का घर देख स्कू
जिससे मैं मोहब्बत करता हूँ
इस लिए मैं एक मजदूर बन गया ।

ख्याल

मेरी आँखों से देखना
सब कुछ बदल रहा है ।
जिसे सिर्फ तुम और मैं ही देख सकते है ।
ये जगह मेरे जितनी स्प्रिचुअल नही रही है
मगर तुम्हारी तरह वायलेंट हो रही है ।
तुम्हारे होते ये जगह भी बात करती
नहीं हो
तो ये भी नाराज़ लगती है
मुँह फुलाएं .....

मैं ऐसे ही लिख रहा हूँ ।
बस वैसे ही
जैसे अनाथालय में बहुत साल बाद अपने अंधे बच्चो से मिल रहा हूँ ।
तुम्हारे जाने के बाद -
क्या कद निकल आया है उनका ।
कितने छोटे पड़ रहे है लफ्ज़ .......
जो पहनाने लाया हूँ ।

सब कुछ बदल रहा है ।
चेहरा
लफ्ज़
शौंक
लेकिन आदतें वही है ।
जब भी किस्से शुरू करता हूँ ,
सब कुछ बदला बदला सा लगता है ।
जैसे कोई सामने जिद्द पे अड़ा हो ,
आँखे बंद , और कानों पे हाथ धरे ।

जैसे जैसे उम्र बीत रही है .....
खिलौने महंगे होते जा रहे है ।

जिद्द को पूरा तो करना है
क्या बचा है आखिर इस ज़िद्द के इलावा
अभी के लिए जाना होगा
मगर मैं लौटूगा ...
हो सके तो ख्याल संभाल के रखना ।

पंकज शर्मा

ਚਿਖੋਵ

1892 ਵਿੱਚ, ਚੇਖੋਵ ਨੇ ਮਾਸਕੋ ਤੋਂ ਲਗਭਗ 50 ਮੀਲ ਦੂਰ, ਇੱਕ ਵੱਡੇ ਜੰਗਲੀ ਇਲਾਕੇ ਵਿੱਚ ਮੇਲਿਖੋਵੋ ਏਸਟੇਟ ਖਰੀਦਿਆ। ਜਿਵੇਂ ਹੀ ਉਹ ਉੱਥੇ ਪਹੁੰਚੇ, ਉਹ ਜੰਗਲ ਵਿੱਚ ਰਹਿਣ ਦ...