मेरी आँखों से देखना
सब कुछ बदल रहा है ।
जिसे सिर्फ तुम और मैं ही देख सकते है ।
ये जगह मेरे जितनी स्प्रिचुअल नही रही है
मगर तुम्हारी तरह वायलेंट हो रही है ।
तुम्हारे होते ये जगह भी बात करती
नहीं हो
तो ये भी नाराज़ लगती है
मुँह फुलाएं .....
मैं ऐसे ही लिख रहा हूँ ।
बस वैसे ही
जैसे अनाथालय में बहुत साल बाद अपने अंधे बच्चो से मिल रहा हूँ ।
तुम्हारे जाने के बाद -
क्या कद निकल आया है उनका ।
कितने छोटे पड़ रहे है लफ्ज़ .......
जो पहनाने लाया हूँ ।
सब कुछ बदल रहा है ।
चेहरा
लफ्ज़
शौंक
लेकिन आदतें वही है ।
जब भी किस्से शुरू करता हूँ ,
सब कुछ बदला बदला सा लगता है ।
जैसे कोई सामने जिद्द पे अड़ा हो ,
आँखे बंद , और कानों पे हाथ धरे ।
जैसे जैसे उम्र बीत रही है .....
खिलौने महंगे होते जा रहे है ।
जिद्द को पूरा तो करना है
क्या बचा है आखिर इस ज़िद्द के इलावा
अभी के लिए जाना होगा
मगर मैं लौटूगा ...
हो सके तो ख्याल संभाल के रखना ।
पंकज शर्मा
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