मैंने पता बदल लिया हैं गलियो और शहरों के नाम बदल गए हैं
यहाँ फूलो की दीवारे हैं . जिन पे न कोई वक़्त की सुइयां हैं |
इस घर को मैंने अपने हाथो से लफ्ज़ से लफ्ज़ मिला कर बनाया हैं |
इसे बनाया हैं कुछ मेरे किरदारों ने ...
हार जाता हूँ , टूट जाता हूँ तो इस घर में चला आता हूँ ..
यहाँ तक आने के लिए न सड़कें हैं ....
यहाँ तक आने के लिए जो हमसफ़र मेरे साथ आती हैं ..
उसका कोई नाम नहीं
कोई वज़ूद नहीं
मज़हब नहीं ... फिर भी उसे कई नाम दे रखे हैं |
अजीब सा रिश्ता हैं , कब बना ?
पहली बार देखा तब ..??
या शायद पता नहीं .. ये रिश्ता सिर्फ इसी के साथ हैं
इस घर से सब कुछ साफ़ दिखता हैं .. नीला आसमान जब झपकी लेता हैं
सर्द रात में जब ओस में सब कुछ मधम पड़ जाता हैं
बादलो में सिर्फ अकेला चाँद और जमीन जब गुमसुम होती हैं
और तब मेरी रूह खुश होती जब आसमान की धड़कने साफ़ सुनाई देती हैं ..
हवाओं में नमी . मौसम की नमी
ये बदला मौसम उसके चेहरे पे एक तिरछी से हंसी |
मैं कहूँ - "तुम्हारी उस हंसी से बेहतर कुछ नहीं , कीमती कुछ नहीं ?? "
वो कहे -" वो बारिश .."
वो सामने जो बारिश जो आसमान से बरसती हैं
पहाड़ो से बहती ,नदिया नालो में चलती झील सागर में मिलती हैं
वो बरिस्ता का पानी आकर घर के सामने नीली झील में ठहरता हैं |
आसमान से गिरती ये मोतियों जैसी बूँदें घर के वरांडे में गिरती हैं ...
तुम्हारा मेरा हाथ थाम भीगने की ज़िद्द ..
शायद उस से बेहतर कुछ नहीं ..
आसमान में मोती जब तुम पे पड़ते हैं
ये मोतीनुमा बारिश मानो तुम्हारे साथ खुद हंसती हैं
तभी जब आमान को अपना चेहरा दिखाया तो साया ढल जाए |
तुम्हे देखते देखते बारिश रुक्क जाती हैं ....
सूरज की किरणे आसमान से दस्तक देने के लिए ... जमीन पर जैसे उतरती हैं .
तो तुम मेरे घर को सुन्ना कर चली जाती हो ...
तुम्हारे साथ होने से बेहतर और कुछ नहीं .. बेशकीमती साथ टूट जाता हैं
तो लगता हैं साँस लेते रहना भी तो सिर्फ ज़िन्दगी नहीं ..
जहाँ कुछ न हो ...वहां उम्मीद होती हैं |
अगर हज़ार भी यही ज़िन्दगी हो तो ख्वाइश यही होगी थोड़ा और तेरे साथ ज़ी सकते |
फिर अगली बार वादे के साथ उस घर को छोड़ मैं भी चला आता हूँ
इन रवायतें के बीच |
जहाँ पर मेरी पहचान पूछी जाती हैं | पहरावे से किरदारों को छाँटा जाता हैं | मेरे नाम से मेरे मज़हब को पहचाना जाता हैं | जहाँ साथ साथ कदम से कदम मिला कर चलने के लिए मोहलत और रस्में रिवायतें की जाती हैं |
इन पथरो के घरो में साँस नहीं आती ..
मकान बहुत हैं लेकिन वैसा घर नहीं यहाँ बारिश होने पर सब कुछ थम जाता हैं |
साथ मोहब्बत , शर्तें , वादे , फ़र्ज़ . हसरतें ......
एक सिरा कहाँ मिलता हैं ज़िन्दगी का
..यहाँ तो सिर्फ ये कहा जाता है के लकीरें बदला नहीं करती ..
एक टकटकी लगी होती हैं उम्मेंदो से , भरोसो से , दिलासो से , सहारो से .
एहसास सिर्फ तारीखें बदलने से नहीं बदलते .....
हसरतें राख होती है कुछ किताबो से ..
हाथो से हाथ यूँ ही नहीं टकराते . नाम जान कर रिश्ते बनते हैं ,
खुद को यहाँ बताना , जब मैं यहाँ हूँ नहीं तो फिर क्या रहना यहाँ ...|
काली सियाही दुनिया के पार उस घर से नीले बादल अच्छे हैं
तो पहुँचता हूँ फिर से ....अब से मैं उस घर में सदा हूँ ,
उसी घर में जिसे हमने बनाया हैं लफ्ज़ो की दौलत से और काल्पनिक किरदारों से |
तुम चले आना मेरे पते की और तो …यहाँ मज़हबी नाम की दीवारे नहीं होंगी | ..
इस नए घर में लिबास देख कर लोगो के नाम नहीं पूछे जाते हैं …
अगर कोई पूछे तो कहना --
तुम ____ हो ..
मैं लेने आऊंगा ..तुझे दरवाजे पर इस बार ..
तेरे वहां पहुँचने से पहले ..
देखना तुम भीड़ में …
उसी जगह पर आकर रुकना …
जहाँ पहली बार फिर मिले थे …
देखना हमारी दोस्त बारिश भी होगी …..
उस भीड़ में कोई लगे कोई शकस कोई मुझ सा ..
तो ये मत कहना की - बहुत बदल गए हो |…..
मैंने पता बदला होगा , किरदार नहीं ….
तुम बातें सुनाना …
चलते चलते जब कदम से कदम साथ साथ चलेंगे |
यहाँ उस मंदिर में भी जरूर चलना
बातें करते करते
उस माली को कहना - "फूल ताज़ा से दे "
और हँसते हुए कहना - " जिसकी खुशबू हमेशा तक रहे |
तुम पूछना की - अब ??
मेरा ज़वाब होगा - तो चलो फिर ….
..
उस छोटे से घर में ..
वादी के पार …
जहाँ पहुँचने के लिए ना रिवायतों की और न ताकना पड़े …
जहाँ न सरकारों की नीली मुहरों के पंख हो …
जहाँ पहुँचने के लिए न सड़के हैं न मोहरे लगती हैं न मुहरें |
कुछ हम दोनों हो और .
वो बातैं जो ..
आज अधूरी पूरी हो जाएँ वो बातें वो सारी ..
फिर से शुरू करेंगे ये बातें …
ये qissey …
पर आने से पहले
फिर कहीं ये न पूछना ??
अपने आप से …
वापसी का वक़्त कब का लिखूं …….???
पंकज शर्मा
बहुत शुक्रिया वक़्त देने के लिए |
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