LAFAZ
कोई मुझसे पूछे कि सबसे मुश्किल क्या है ? - "तो मैं कहता हूँ उम्मीदों में पनपता 'इंतज़ार'
आज कल उदास मौसम हैं ... लिखने का इंतज़ार रहता हैं .....
कब कोई ख्याल बने... और उस ख्याल को क़ैद कर तुम्हे लिख स्कू ...
कुछ दिन बेचैनियों में गुज़रे ... कुछ इंतज़ार में गुज़रे
फिर इंतज़ार के बाद एक नए मौसम में लिख दिया - ..नए मौसम का नया रंग
एक नया "क़िस्सा" |
ये इंतज़ार भी गज़ब हैं .. |
आज कल नींद में ख्वाब आते हैं
ख्वाबो में तुम |
और इसके आगे आते हैं लफ्ज़ो की दुनिया में मोड़ ...!!!!
मेरे तो कई "ख्वाब" अधूरे हैं - जैसे की ???
लेकिन इस उदास मौसम में एक सिलसिला शुरू किया हैं- शायद लिखते लिखते उसका ज़िकर करता रहूँ |
बाकी लफ्ज़ो ने फिर से इरादा कर लिया तो लिख दिया |
फिर से इन अधूरे लिखे ख्वाबो को पूरा करना हैं -
ख्वाब, हकीक़त, चाहत, आरज़ू, इंतज़ार....|||
ऐसा वादा तो नहीं पर दिल की बात ज़रूर करुगा ...
मुझे मालूम हैं -जानता हूँ सारे ख्वाब झूठे हैं |
जो ख्वाहशें हैं वो भी अधूरी हैं और अधूरी रहेगी ...!!!!
मगर ज़िंदा रहने के लिए ऐसे उदास मौसम में ऐसी गलतफहमियां भी तो ज़रूरी हैं |
आज कल हवाओं में अजीब सी तरह की ख़ामोशी हैं ...
जो बोलती बहुत कुछ हैं ...लेकिन सुनती कुछ भी नहीं ...|
शायद एक शहर वैसा हैं या लोग नए हैं - जाने क्यों तुम्हे छोड़ और किसी से तबियत नहीं मिलती .....
ये उदास रास्ते ...
उदास मंज़िलें ..
उदास ज़िन्दगी ...
उदास मौसम
उदास वक़्त ....
देख कितनी चीज़ो पे इलज़ाम लग जाता हैं एक तेरे न बात करने से !!!!!!!
पर ये ख़ामोशी भी अच्छी हैं अब से इस ख़ामोशी को ख़ामोशी से बात करने दो |
ज़रूरी नहीं की हर बार एहसास लिख कर जताऐ ,कुछ वक़्त की लफ्ज़ो की ख़ामोशी भी अच्छी होती है|
पर रोज़ लिखने का इन्त्ज़ार रहता हैं ....
जैसे शुरू करता हूँ ये लफ्ज़ कहीं डूब जाते है ..
जैसे गुलाबी शाम अपने अंदर सफेदी को छुपा लेती हैं ....
रोज़ बैठता हूँ जो देखा था तेरे साथ एक ख्वाब
उस ख्वाब को ख्याली पुलाव में डुबो कर कुछ रंग लिख स्कू ..
पर सुना हैं काफी बदल गए हो तुम ... आजकल मेरा लिखा पढ़ नहीं पाते ..
अच्छे तो वो अज़नबी हैं .. कम से कम ख्याली पुलाव ही सही .. दिल में छुपे खामोश लफ्ज़ो को खूब पहचानते हैं ..
पर इन ख्याली पुलाव की महिक बहुत अच्छी हैं |
कहने को बहुत कुछ रहता हैं मेरे पास उन लफ्ज़ो में मेरे एहसास बयाँ हो जाए ऐसे लफ्ज़ की तलाश में लिखते लिखते जाने कितनी कल्पनाओ में ढूँढा ....
पर न तो वो लफ्ज़ ढूंढ स्का |
और न वो नज़र जो तुम्हे दे स्कू ..
अकेला चलना नहीं चाहता हूँ .....
वक़्त के साथ दौड़ना नहीं चाहता हूँ ..
जब दूर से देखता हूँ
तो अपने अंदर भी झाँक लेता हूँ
कुछ कमियाँ हैं ...
कुछ बेचैनियाँ हैं ...
कुछ मज़बूरिया हैं ....
और हक़ीक़त में भी कोई आ के कहता हैं - दिल के बजार में नाज़ुक हो ..!
क्या नाज़ुक होना अच्छा नहीं ये तो दिल की बात हैं ...
पर दिल की बातें तो होती ही है लफ्ज़ो की धोखेबाज़ी ....
लोग कहते हैं "you are not a writer ..only supposed to be writer ..."
मेरे होने न होने से क्या फर्क पड़ता है ..
मेरी ख़ुशी तो इसी में हैं ..
और हमारे लिए कोई क्या सोचता हैं ..ये तो सोच हैं उनकी जो अच्छा नहीं सोच सकता तो गलत सोचता हैं ..????
मेरे लिए ये मेरी आदत भी हैं ...
नशा भी हैं ...
तुम्हे देखना .. तुम्हे चाहते रहना शायद इससे से बढ़ा कोई नशा नहीं ..!!
बस ये खामोशिया साथ देती रहे !!!
कभी सोचता हूँ लिखना छोड़ दू ..
फिर क़िस्से तो लिखता ही हूँ ....
यहाँ नहीं तो कहीं और किसी कोरे कागज़ के ऊपर
किसी दीवार के ऊपर ..
किसी खिड़की के पास ..
अंदर आती हवाओं के साथ बातें करते करते ....
अगर कोई पूछे कि दरवाज़े अच्छे होते हैं या खिड़कियां
तो बताना कि दरवाज़े दिन के वक़्त
और खिड़कियां शामों को
और शामें उनकी अच्छी होती हैं
जो एक इन्तज़ार से दूसरे इन्तज़ार में सफ़र करते हैं
हालांकि सफ़र तो उस आग का नाम है
जो कल्पनाओ से हकीकत पर कभी नहीं उतरी |
खैर फिर जा रहा हूँ इस बार कुछ अधूरे लफ्ज़ ले कर
फिर वापस लौटूंगा
अधूरी कहानियाँ, अधूरे लोग , अधूरे सपने , अधूरे जज्बात ,कुछ अनसुने अल्फ़ाज़ कुछ अनकही सी बातें .अधूरे एहसास
मगर एक मुकम्मल लफ्ज़ के साथ |
ख्वाब, हकीक़त, चाहत, आरज़ू, इंतज़ार के साथ |
| पंकज शर्मा |
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