आईना
तुमसे बात करने का जब भी मन होता हैं तो लिख लेता हूँ ये एहसास भी बिलकुल वैसे होता हैं जैसे
" शाम की चाय मे शक़्कर को घोलना | "
आज फिर से कुछ कहने आया हूँ .... अपने QISSEY लेकर
लोग चाहे जो भी कहे -अंदर का लेखक कभी मरने नहीं देता हूँ |
हाँ, बस कभी-कभी कोमा में चला जाता है...... ढूंढने तुम्हे !!!
...बस एक ख्यालो में तुमसे मिलने की उम्मीद सुला देती है .... चाय जगा देती है ... और तुमसे मिलने की जरूरते इस आईने के सामने पहुँचा देती है |
वैसे तो इस कमरे में बहुत से आईने है .. पर फिर एक बार इस आईने ने सवाल किया ??
क्यों लिखते हो ?... कैसे लिख लेते हो ?... और किस के लिए लिखते हो ...?
"हँसता रहा उसका सवाल सुन के" ......फिर वही बात फिर से कह दी |
"लफ्ज़ कुरेदता हूँ ....
वहम बनाता हूँ ...
एक कलम सिर्फ कोशिश है ...
रूह तक जाने की....
तुमसे मिलने की ...."
मेरे पास तो एक ये जरिया हैं बाकी - मेरे क़िस्सो में पनपते हैं कुछ " लफ्ज़ " तुम्हारे होटों तक जाने के लिए |
और आज कुछ ढूंढते ढूंढते तुम्हारे अफ़्साने में..... एक पुराना सा ख़त खोला अनजाने में ।
वो खत भी तो आइना ही था ......एक एहसास था ... हकीकत के पास .... कल्पना से दूर...
वो लफ्ज़ तुम्हारे !!! दिल से कहूँ तो दिल से लिखे लफ्ज़ होते हैं इंसान का आईना !!
शक्ल का क्या..???
वो तो उम्र और हालात के साथ अक्सर बदल जाती है....!!
आईने अक्सर धिधकारते है - " लिखना फ़िज़ूल है साथी !!!
पर फिर भी लिखता हूँ ..!
जानता हूँ जिसके लिए भी लिखता हूँ........!!!!!
हर आईना यही कहता हैं - " वो नज़र कभी तेरे लफ्ज़ो को पढ़ नही पाएंगी |"
पर क्या करूँ....
तुम्हे लिखना भी एक आदत सी हैं ......
तुम्हे सोचना भी एक आदत सी है ......
तुम्हे रोज़ याद करना भी तो आदत सी है ...
पर तुम्हे अब भूलने की कोशिश नहीं हैं ....
क्यूंकि एक वादा तुमसे भी हमने किया है ... "याददाश्त" का
वो क्या था जो -...?????????/
तुम्हारा ही एक सवाल - " जानता हूँ !! दोनों हम इसको निभा सकते नहीं,
सौ तुमने भी वादा कर लिया .....
तो मैंने भी वादा कर लिया अपने आप से ...|
खैर मुझे सौदेबाज़ी करनी न तो आती हैं .. न कभी सीखनी हैं !!!!
ये आईने को जब भी देखता हूँ तो इस बेगाने से घर में जब कोई नया आईना दीखता है ...तो उसे देखते ही मलाल सा उठता है " चलो इस बेगाने से घर में तुझसा कोई तो हैं |
तेरी तारीफ़ भी करूँ तो क्या करूँ ..
पाने के लिए भी तुम !....
खोने के लिए तुम ! ..
पर वो डर सा निकल गया है अब यूँ कुछ कहते हुए से भी डरता हूँ .,, कहीं भूल से तू ना समझ बैठे ... की मैं तुझसे मोहब्बत करता हूँ...... ???????
तो हाल चाल पूछूँ या जुबां से बस इतना पूछ लेता हूँ ??
क्यूंकि आँखें देखता हूँ तो रेगिस्तान सा दीखता हैं .....जब भी मिलते हो तो बड़े बंजर बंजर से दिखते हो.............!!!!!!
जी चाहता हैं ...वापस लौटूं और पूछूँ .............
पर फिर अनकहे लफ्ज़ याद आ जाते जो कदमो में बेड़ियां बनते हैं ---
फिर वापिस लौटे भी ..
तो क्या सवाल करे !!!
क्या ज़वाब दे |
"तुम बस लिखते रहो... क्यूंकि तुम्हारे लिखने से मुझे अपनी खबर मिलती हैं "
मुझे अपनी कोई फ़िक्र नहीं ....!!
खामोशी की सदा सा रहता हूँ
आजकल बेपता सा रहता हूँ.......
घर मेरे दिल में भी रहा न कभी
घर में मैं भी आज कल जरा सा रहता हूँ
पर एक नया घर ढूँढा रखा हैं .......
वक़्त मिला तो उसका ज़िक्र अगली बार करेंगे ...
पर जब भी वापस लौट कर इस आईने से मिलता हूँ तो पूछता हूँ ????
कुछ ख्वाहिशें .......
कुछ ख्वाब ......
कुछ तमन्नाएँ ........
कुछ आशाएं .........
कुछ मायुसियां .......
कुछ दर्द........
कुछ उलझने .......!!!!!!!
ये सिलसिले बस यूँ ही चलते हैं ज़िन्दगी भर सांसों के साथ...........?????????
ये था मेरा एक किस्सा -पिघलती बर्फ सा ..एक किस्सा ज़िन्दगी का " आईना " सा |
| पंकज |शर्मा
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