Saturday, 30 November 2019

दहलीज़ के पार

वो बिल्कुल एक कोने में खड़ी है 
चुपचाप किसी के इंतज़ार में 
वो यहां से जाना चाहती है 
लेकिन किसी ख्यालों में डूबे डूबे
उसने खुद को रोक रखा है 
चले जाने से पहले वो सोच रही है 
वो चली जाए तो क्या होगा 
सब खाली हो जाएगा 
उसके साथ चली जाएंगी सारी उम्मीदे 
वो एक दम से दरवाजे पर खड़ी बिफर पड़ती है 
आंखों पर अटकी आँसू की बिंदू 
आँख से निकलते ही कहीं हवा में गायब हो जाती है
और कितनी देर तक वो यूं ही बिना बताए बिना रुके 
चलते चलते कहीं खो जाती है ।
आंसू की बूंद अपने घर से एक बार निकलकर 
दोबारा उस घर में नही लौट पाती ।

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