Monday, 5 February 2018

शिताब

मैं आज कल जिस दुनिया में रहता हूँ वह दिन बहुत् बहुत छोटे छोटे है और रातें इतनी लंबी है कि - कैसे बयान करूँ !!!
बस बड़ी मुश्किलात से कट जाती है ।
दिन की भीड़ किसी न किसी तरह वक़्त और मन दोनो बहला देती है ।
मगर रातें सुनसान और गमगीन लगती है , जहां दिन में कुछ छूट जाता है वही से वो ख्याल और वो बातें आकर जकड़ लेती है ।
मेरे पास अब एक घर है ।
घर किराये का है जिसका किराया मैं नही देता हूँ ।
मगर यहाँ इस घर को चलाने की जिम्मेदारी मेरी है । बस समझ लो कि दिन कुछ इसकी जरूरतों को जुटाने में ही गुज़र जाता है ।
जो सपने तुम्हारे लिए देखे थे , उनका हक कोई और माँगता है । पर उसे ये हक़ जमाने का कोई हक दे नही रखा है । बस ये परेशानी है ।
ये परेशानी ऐसी है कि जैसे तुम्हारी चीज़ मेरे पास हो और मैं उसे संभाले बैठा हूँ । इस सब की असल हक़दार तुम हो , तुम थी और तुम ही हक़दार रहोगी ।
ये ख़्याल ये दिन ये रातें .... तुम्हारे ही लिए सजाई थी ।
इस घर को भी तुम्हारे लिए ही सोचा था ।
जो सोचा था
सब कुछ वैसे का वैसे ही है
बस तुम्हारी कमी है ।
सब कुछ है
मगर तुम्हारे न होने से सब कुछ खाली खाली से लगता है ।
तुम जब भी आना तो वहुत सारा वक़्त ले के आना क्योंकि इस खालीपन को निकाल फेंकने के लिए कुछ लंम्हे लगेंगे  । तुम्हे देर नही करनी चाहिए ।
भूल जाओ और एक नए से होकर फिर से शुरुआत करते है और इस खालीपन को फिर से भरते है ।

No comments:

ਚਿਖੋਵ

1892 ਵਿੱਚ, ਚੇਖੋਵ ਨੇ ਮਾਸਕੋ ਤੋਂ ਲਗਭਗ 50 ਮੀਲ ਦੂਰ, ਇੱਕ ਵੱਡੇ ਜੰਗਲੀ ਇਲਾਕੇ ਵਿੱਚ ਮੇਲਿਖੋਵੋ ਏਸਟੇਟ ਖਰੀਦਿਆ। ਜਿਵੇਂ ਹੀ ਉਹ ਉੱਥੇ ਪਹੁੰਚੇ, ਉਹ ਜੰਗਲ ਵਿੱਚ ਰਹਿਣ ਦ...