Tuesday, 8 March 2016

हर रोज़ एक तस्वीर बदलती हैं ..
हर तस्वीर में एक सा ही चेहरा ..
जिसे रोज़ देखता हूँ .
चेहरा वहीँ ..
लिबास अलग ..
उसे देखता हूँ तो पुराण सब कुछ याद आता हैं ..
हाँ ,.......कहीं देखा हैं !!!!!
इस बोलती तस्वीर को ..
क्यूंकि उसके गुलाबी होंट हैं तुमसे  ..
नाक , आँखे .. नैन  नक्श बिलकुल जैसे ..
याद करता हूँ तो पूछूँ  कहाँ देखा हैं
इस बोलती तस्वीर को  ..

बातों बातों में कितना कुछ कह जाती हैं तुम्हारी " आँखें "
ज़िन्दगी अच्छी कटती हैं तेरी बातो में
शाम की थोड़ी सी बातचीत बिलकुल जैसे
शाम की उस चाय में घुली आधी कॉफ़ी की तरह ..
थोड़ी सी कॉफी , थोड़ी सी चाय .....

इस थोड़े में से कितना कुछ चला आता हैं |
रूठी हुई ख्वाहिशो में कोई सुल्हा.....
खामोशियों में बातें ...
आधी चाय और आधी कॉफी का स्वाद अब भी ताज़ा सा हैं ..
पर कुछ अधूरा सा हैं वो सवाल अधूरा सा जवाब ....
शाम को कदम से कदम जब भी साथ साथ बातें करते ....
चलते चलते उसने पूछा एक सवाल ?
" तुम्हें क्या लगता हैं ..
जिंदगी सच है या सपना ..
कदमो ने सांस ली और ..
जवाब था -" जिंदगी सपने जैसा सच .."
हीर को न मानने वाला हर वो ' क़ैदो '
प्यार को न मानने वाला हर ' काफ़िर '
हाथ में पकड़ा फूल बगैर बोले भी बोल सकता हैं ..
मगर बोलती हैं खामोशियां...
!!!
कहीं किसी रोज़ , रोज़ ऐसा हो तुम्हारी हालत मेरी हो ...
जो रातें  तुमने गुज़ारी मरके ..
वो मैं अब गुज़ारु मरके...
तुमने गुज़ारी वो रातें कभी मर के
कभी  है के ..
बड़ी  वफ़ा से संभाली वो यादें और कुछ सुगातें ...

 ये जिद्द थी की  पिघले और वो बुलाते  ..
मुझे ये उम्मीद के कोई पुकारे ..
नाम मगर अभी भी हैं होंटो पर
मगर आवाज़ में पड़ चुकी हैं दरारें   ...


याद आता है ये तो वही सोच हैं मेरी ..
ये  सोच जो रोज़ नया शरीर धारण कर लेती हैं
मेरे सिरहाने जो नींद बाकी हैं
वो सोने के लिए पूरी नहीं ..
मुझे सुलाने के लिए तुम मेरे चेहरे में वो जुल्फे बिखेर देना ..
शायद इधर उधर भटकती दौड़ कर वापस आ जाए मेरी बेरहम नींद !!!!!


pannkaj sharma


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