Wednesday, 9 September 2015

sach (hindi)

मेरी हिंदी कविता आज ही सच क्यों बोला मैंने .....

वादे भी किये,  दिलासे भी दिए ...
झूठ से भर कर घाघर भी दिए...
मुठी भर उम्मीदो के बदले में सागर भी लिए ....
औकात क्यों न जानी अपनी,  क्यों पत्थर को सोने संग तोला मैंने 

बिखर जाना था अगर आज ही मैंने ......
फिर ...... आज ही सच क्यों बोला मैंने !!!!!!!

सच्च
अंत जब पता ही था ...
उम्मीदो का नारियल क्यों तोड़ा मैंने .....
खाई देख कर भी न रूह  को क्यों मोड़ा मैंने .....
पता था जब इस बिन अल्फ़ाज़-ए-किताब के बारे में ......
क्यों इस खाली किताब को खोला मैंने ....

अगर आज ही सच में डूब जाना था
 तो.......... आज ही सच क्यों बोला मैंने .....!!!!

नहीं चल सकता जब परिंदा हंस की चाल ....
फिर क्यों अपने आप को ऐसे ख्याल में दिखाया मैंने ...
तड़पते हुए को क्यों सताया मैंने ......
अधूरे ख्वाबो को क्यों हक़ीक़त बताया मैंने .....
क्यों अमृत में कड़वे ज़हर को घोला मैंने......

अगर आज ही ज़हर दे कर मारना था ...
तो ....... आज ही सच क्यों बोला मैंने ........!!!!

चैन ले रहे,  सांस ले रहे ....
कबर में दफ़न हुए ज़ख्मो को क्यों फोला मैंने ......
 
सच अगर यही था ....
 तो ...... आज ही सच क्यों बोला मैंने ..... !!!!!

सच

| पंकज शर्मा |

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