एक दिन हमारे करीबी अज़ीज़ परम प्यारे दोस्त के साथ, लंबी-लंबी बहसों में डूब गए. Punjabi Cinema के उस सुनहरे सफर पर जा अटके ,जो 1940 से शुरू होकर 2025 तक की दास्तान बयां करता है. बतियाते बतियाते हमने 2050 तक की झलक भी देख ली.
लेकिन इतने लंबे पंजाबी फिल्मी इतिहास में से हमें सिर्फ 10 फिल्में चुनने को कहा जाए तो लंबे सोच विचार और सिनेमा लाइब्रेरी को अगर छांटा जाए तो पिछले 30 सालों में से जितनी पंजाबी फिल्में बनी उसमें से अम्बरदीप सिंह द्वारा निर्देशित एक औसत फिल्म भी पंजाबी फिल्मी इतिहास के हाशिए से अलग नजर आती हैं. जिसे सर्वगुण सम्पन्न फिल्म आंका जाए तो कोई हैरानगी नहीं क्योंकि ये कहीं न कहीं इसमें मौजूदा हालात की धड़कती नब्ज़ हैं.
पंजाबी फिल्मों 70 के दशक में जट्ट और जमीन के मसलों से निकली तो में 80 में जोरू पर आ कर रुक गई. दस साल cinema halls खाली पड़े रहे, like a silent era. फिर आई Jaspal Bhatti की "Mahaul Theek Hai" आई जो आज भी classic Punjabi comedy का original diamond Masterpiece हैं.
उसके बाद फिल्म "शहीद ए मोहब्बत बूटा सिंह" और "वारिस शाह" जिनसे पंजाबी सिनेमा में कुछ नए दर्शक जोड़े.
Romantic era को revive किया "Yaara Naal Baharaan" ने.
नए वाले पंजाबी सिनेमा को अगली सीढ़ी और विदेशी दर्शक वापस मिले "असा नू मान वतना दा" से.
इसके इलावा बीच बीच में कुछ फिल्में ऐसी भी आई जिसने एक आईने का काम किया पारिवारिक फिल्मों से हट कर कुछ नई और असली कल्पना नज़र आई. जतिंदर मोहर की फिल्म मिट्टी, सिकंदर और किस्सा पंजाब में एक असली पंजाब दिखा.
हर दशक में पंजाबी सिनेमा लोगों को फिर से याद दिलाता रहता है कि "1984" एक सिर्फ दुर्घटना नहीं है.
बीच बीच में स्लो पेस सिनेमा या अपनी भाषा में बोलूं तो textbook cinema सिनेमा गुरविंदर सिंह द्वारा भी सिर्फ चुनिंदा दर्शकों के लिए कहीं कहीं अवेलेबल हैं. जो दस ठप्पे खा के via फेस्टिवल होती एक आम दर्शक वर्ग तक पहुंचती हैं.
इसके बाद के सिनेमा को गोल्डन इरा की शुरुआत कहेंगे जब एंट्री होती
है बादशाह ए कॉमेडी राइटिंग The Great Amberdeep Singh के Magic की✨
कागज़ पर एक लकीर भी खींच दे तो वो भी बहुमूल्य है.
ऐसा मुकाम अगर किसी के पास है तो वो अंबर है.
पंजाबी फिल्मों को एक नई दिशा की तरफ हर बार मौजूदा पंजाब के हालात को एक व्यंग्य की तरह अपनी फिल्मों के जरिए जाहिर कर देते है.
Amberdeep Singh की नई फिल्म मिठड़े उनकी बाकी फिल्मों से औसत से थोड़ा कम है मगर पूरे पंजाबी सिनेमा के मुकाबले बहुत बेहतर से सिर्फ चार कदम कम हैं.
फ्यूचर में कुछ अलग और बहुत अलग की उम्मीद के साथ अंबरदीप जी को बहुत बहुत हिम्मत और ऊर्जा के साथ हर आए साल दर साल नए प्रोजेक्ट लाते रहने की गुहार.
keep the Cinematic magic alive !!!!
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