वो बिल्कुल एक कोने में खड़ी है
चुपचाप किसी के इंतज़ार में
वो यहां से जाना चाहती है
लेकिन किसी ख्यालों में डूबे डूबे
उसने खुद को रोक रखा है
चले जाने से पहले वो सोच रही है
वो चली जाए तो क्या होगा
सब खाली हो जाएगा
उसके साथ चली जाएंगी सारी उम्मीदे
वो एक दम से दरवाजे पर खड़ी बिफर पड़ती है
आंखों पर अटकी आँसू की बिंदू
आँख से निकलते ही कहीं हवा में गायब हो जाती है
और कितनी देर तक वो यूं ही बिना बताए बिना रुके
चलते चलते कहीं खो जाती है ।
आंसू की बूंद अपने घर से एक बार निकलकर
दोबारा उस घर में नही लौट पाती ।