तारीख - 7 जुलाई 2017
स्थान - मित्तल माल बठिंडा फ़ूड कोर्ट
खाते वक़्त दूई चीज़ों के बारे में बराबर ध्यान रखते है ।
न ज्यादा बात करो और न ही ज्यादा सोचो । पर हम अपने किसी मित्र के इंतज़ार में हम तो सिर्फ अपने नाखून ही खा रहे थे । टाइम पास के लिए फ़ोन में ऊँगली मारना बेहतर समझा मगर एक सामने के टेबल पे एक मोहतरमा बैठी थी पहली नज़र में कहूँ तो डिस्ट्रैक्शन ।
बोले तो 2 टेबल सामने क्रिकेट की भाषा में बोले तो लॉन्ग ओन पे । मोहतरमा अकेली थी । मोहतरमा के सामने खाने की कोई आइटम रखी थी लेकिन उसका नाम हमें पता नहीं । हाथ में चमच्च है मगर एक बार भी चमच्च मुँह तक नहीं गया । मोहतरमा देखने में लग रही है कि किसी के इंतज़ार में आँखों किसी को ढूंढती हुई । बेचैनी देखते ही पता चल रही थी । अचानक मोहतरमा का पारा चढ़ा और
ये लो मोहतरमा ने राईट कान से हेडफोन निकाल के ज़ोर से टेबल पर पटक दिया ।
अब मोहतरमा धीरे धीरे चमच्च को मुंह तक ले के जा रही है मगर ये क्या मोहतरमा ने चमच्च भी गुस्से में फेंक दिया और इसी के साथ ही उन्होंने बाकी लोगो का ध्यान भी अपनी तरफ खींच लिया । मोहतरमा ने गुस्से में अपना माथा पकड़ लिया और पास पड़े कोल्ड ड्रिंक का हल्का सा सिप लिया । लोगो ने 6-7 सेकंड तक मोहतरमा की तरफ घूरा और अपनी अपनी बातचीत में फिर दुबारा वापस चले गए । हमारी नज़रें अब भी मोहतरमा को पूरी तरह से देखती हुई । हमारे अंदर भी थोड़ी सी हिम्मत हुई और हमने एक स्पून ले के मैडम के टेबल पे रख दिया । और वापस आ के अपनी क्रीज़ पे बैठ गए और फिर से मोहतरमा की तरफ देखने लगे । मगर इस बीच हमारा उसके टेबल पे चमच का रखना मोहतरमा ने शायद नोटिस ही नहीं किया । मगर एक चीज़ बार कर रही थी जेब से फ़ोन निकालती आँखों में आये आँसूओ के जालों को थोड़ा सा साफ़ करती और दोबारा शीशे से बाहर देखना शुरू करती फिर थोड़ी देर बाद फोन निकालती खिटपिट फोन को झाँक के दोबारा अंदर डालती ।
अपने आप में कुछ गहराई से सोच रही है बार बार फिल्म ऑडी की तरफ देख रही है शायद कोई वहां से निकलेगा । उसकी सारी परेशानी को मैने लंबे वक़्त देखा । थोड़ी देर में वो सर पकड़के रोने लगी । इस टाइम मेरा हाल बिलकुल वही हो रहा था जो मोहब्बतें में जिम्मी भाई का प्रीती को देख के हुआ था । वैसे मैं तो वो सात दिन मूवी का प्रेम कुमार पटियाले वाला हूँ जिसने 30 मिंट से पानी तक नहीं पिया बल्कि बेल्ट का एक हुक और क्स के बाँध लिया कि कहीं से भी भूख एंट्री न मार ले मगर लड़की के आंसुओं ने सब कुछ भुला दिया । लड़की के अंदर और इसकी ज़िन्दगी में ऐसी कौन सी समस्या चल रही है इसको जानने के लिए दिल बोल रहा था जा कंधा जा ।
जा पूछ ले लड़की की समस्या ।
पर मैंने सोचा इसी बीच में शायद उसे कोई मिलने आ जाए इस लिए वेट कन्धा वेट ।
लड़की ने ब्लैक टॉप पहन रखा है ।
साँवला रंग ।
आँखों में जो ऑय लाइनर था वो बह बह के गालों तक आ चुका था । मगर मैं 2 मिंट और वेट कर रहा था हिम्मत जुटाने की ।
वैसे रोती हुई लड़किया खूबसूरत लगती है ।
मगर अंदर एक किसी शायर का शेर याद आया क्यूँ न किसी रोते को हसाया जाएं ।
जब उसकी गंगा जमना नाक से बहने लगी तो हमारे दिल को भी आराम न आया और तशरीफ़ उठा के उसके सामने जा कर सजा दी और हाथ में किनले की पानी की बोतल से एक पेग उसे बना के दे दिया । हमारी नज़र उसके फ़ोन पे पड़ी दिखने में लड़की के फ़ोन की बत्ती जली दिखाई दिया एक वॉलपेपर जिसमें वो किसी के साथ हंस रही है । दिलासा या वज़ह पूछने की जल्दी नहीं की ।
देखो मैं सामने टेबल पे बैठा कब से देख रहा हूँ । मैं तुम्हारी उदासी का इलाज़ तो नहीं कर सकूँगा । मगर किसी की तकलीफ हो देख नहीं पाता हूँ तुम्हारी जगह कोई और भी बैठा होता तो फिर भी उसके साथ मैं ये बात ही करता । अगर ऐसा ही इग्नोर करते हुए चुपचाप चला जाता तो गिल्ट मेरी जान ले लेता । तुम्हारी कोई भी प्रॉब्लम हो उसे भूलो या फिर यहाँ बुलाओ । मगर प्लीज ऐसे इन गरीबो के चमच्च मत तोड़ो ।
तुम्हारी ज़िन्दगी में कुछ भी हुआ हो किसी ने भी तुम्हे तकलीफ पहुंचाई हो वो भी सिर्फ गिल्ट महसूस करके मुक्त नहीं हो सकता । एक इंसान का दूसरे इंसान से मिलना सबसे बड़ी दुर्घटना होती है और ................................ उसने पानी का गिलास ख़तम किया हमने एक और गिलास भर के उसे दिया उसने पहला लफ्ज़ बोला - "बस"
वाह वाह !! क्या बस बोला । चाहे आज तक हम सिर्फ रोडवेज की बस सूंघे थे । मगर उसके मुंह से बस भी मर्सेडीज़ लगा ।
हमने उसकी प्लेट में पड़े खाने को देख पुछा क्या है ये ।
इस बार उसने क्या बोला समझ तो नही आया मगर देखने में लग रहा था किसी ने चार प्रोंठो के ऊपर शिमला मिर्च और टमाटर की चटनी गिरा दी हो । उसका ध्यान कहीं और था तो हमने खाया तो पता चला कि ये पिज़्ज़ा जैसा ही कुछ है मगर खाते खाते लड़की से पुछा के क्या हुआ । उसने सर न में हिलाया । लडकिया कभी भी कुछ नही बताती मेरे घर में भी ऐसे ही है ।
उसके अंदर पता नही क्या चल रहा था 15 मिंट तक उसके सामने बैठा सवाल कर के पुछा शायद मैं कोई उसका जवाब दे सकता । पूरे माल को नज़र घुमा के देखा सबसे सच्चा चेहरा इस लड़की का ही लग रहा था ।
इतने में मेरे दोस्त आये और मुझे जाना था ।
लड़की से मैं सॉरी बोल के उठने लगा तो उसने थोड़ा सा न मात्र सा हँसते थैंक्यू बोला ।
ये थैंक्यू मुझे थैंक्यू ही लगा । मैंने भी उसे keep smiling का मशवरा दिया । बिना वजह बताये वो चली गईं ।
मैं भी काम ख़तम करके उसे ढूंढने वही आया पर मोहतरमा नही मिली ।
बस उसकी हंसी याद है । शायद यही ज़िन्दगी है कभी हंसना कभी रोना । मैं कई बार रोता हूँ सब के सामने भी रो देता हूँ पर जब कोई आंसू पोछने वाला हूँ तो तकलीफ कम होती है । एक जिंदगी है, जो करना चाहते हो कर लो, जरुरी नहीं की क्रिकेट खेलने वाला सचिन की तरह ही खेले…सिर्फ मैदान में आ जाए उतना ही काफी है…जो सोचा है करो और करने के बाद कभी मत सोचो…वरना 55 की उमर में जब 20 साल के लौंडो को ज्ञान दोगे तो वो भी बोलेगा अंकल हिल गये हो क्या ।
काम धाम और सपनो के पीछे भागते भागते जीना भूल जाते है । लड़की को देख कर प्रॉब्लम तो नही समझ पाया । मगर एक चीज़ बराबर समझा अपनी हंसी के इंजन की चाबी किसी को न दे । कई लोग होते है जिनके बिना हमारा गुज़ारा नही हो सकता । लेकिन जिंदगी जीने की बात हो तो नो ईफ़ नो बट और न ही स्टार लगी कंडीशन अप्लाई । नफरत हो या मोहब्बत वक़्त के साथ कम हो ही जाती है ।
No comments:
Post a Comment