बाकी इतिहास -
पहले वो डराते है फिर समाधान लाते है । ऐसे शख्स बहुत है । हमारे यहां नही है । भारत से बाहर ऐसे है । उन्हें पता है कि मैक्सिको से क्या मंगवाना है क्या भेजना है ।
दुनिया आपातकालीन मोड पर एक्टिव है ।
" या तो ख़तरे से भिड़े या दौड़ जाएं । "
रिंग से अक्लमंदी कर के निकल जाओ या मार खाते रहो ।
सबूत एक खोज है । उसे ढूंढने वाला अपनी खुशी जा जा कर बताता है । खोज खाने लायक हो तो सबसे पहले अपने दोस्त को खिलाता है पर अगर महँगी हो तो बांट देता है ।
प्रेस वाले भईया बहुत अच्छे है । कमीज़ को इस तरह इस्त्री करते है कि चाहे सदियों न नहाएं मगर इंसान लगते है । साफ कपड़ो की सुराखें बदबू नही संभाल पाती है ।
डरा नही रहा रहूँ । डर का कारोबार कोई और कर रहा है ।
"डरती क्यों हो सामने खड़ी हो
हरि भरी हो और
बुरके में खड़ी हो
और नज़र लगने की बात करती हो "
मुझे कोई गारंटी दे दे कि ये दवा की शीशी सुकडू तो मुझे डर न लगे । बाजार गर्म है । जून का महीना है ।
बीमा धड़ाधड़ बिकता है क्योंकि डर कम करता है ।
लेकिन सूरज की गर्मी में सड़क पर पड़ी बर्फ का बीमा क्यों नही होता ।
क्योंकि पोप कहते है । पोप पापो से बचाते है । डर की दवाई भाषण में देते है । मगर 60 साल के पोप retirement के बाद मसाज पार्लर का कारोबार शुरू करना चाहते है ।
आप सवाल करें । जो काम करने में डर लगता है । घर से पर्दा करके निकलोगे तो तुम जिंदा हो तुम ।
वैक्सीन लगवा लोगे तो ज़िंदा हो तुम ।
पहाड़ो में रहते हो तो ज़िंदा हो तुम ।
मैं डरा नही रहा हूँ
मैं समाधान भी नही बता रहा हूँ
मैं वो नही हूँ ।
मैं तो विदेशी हूँ .........