दोस्तों की शिकायत थी
आज सुबह जब ऑफिस के लिए तैयार हो रहा था , तो आईने को देखते ही हॉस्टल और P.G के दिन याद आ गए... वो जब कुछ भी पहनना हो या कोई भी मैचिंग जूतो से लेकर पेंट , शर्ट तोह आम बात थी .... मेरे लिए सब कुछ सरकारी सम्पति की तरह था ....कोई भी मैचिंग का पंगा हो वो एक मिनट में सोल्व हो जाता था। जिसकी गर्लफ्रेंड होती उसको अपने कपडे सलेक्ट करने के लिए पहल दी जाती... गर्ल फ्रेंड के साथ चाय या डिनर पर जाना हो, तो सबसे पहले क्या पहनना है, इसके लिए वोटिंग होती थी और उसके बाद की बाते, ओह गॉड.… कोई मतलब नहीं फिर भी रात को लड़की को उसके P.G छोड़ने के बाद , हॉस्टल जाते ही यारो के साथ आप की अदालत की तरह रजत शर्मा जैसे इल्ज़ामों का साह्मणा करना पड़ता ........यारो के सवाल और गॉसिप के टॉपिक, कहाँ गए, क्या खाया, क्या किया और कितने में ठुकवा के आया है , अगली बार कब मिल रहे हो.......
बाते यहीं ख़त्म हो जाती तो ठीक था, हँसी तो तब आती थी जब बातों के ख़त्म होने के बाद एक यार धीरे से आकर यह पूछना की उसकी कोई और फ्रेंड है क्या जो उसके जैसी हो? टॉपिक ख़त्म देर नहीं होती थी, कि बस अगली के टॉपिक अपने आप मिल जाता था। लेकिन अब सब याद आता है, बॉलीवुड की किसी फिल्म की तरह बस यादों के पन्नो में दब के रह गयीं हैं सारी बातें।
कुछ भी हो एक दूसरे की फ़िक्र पूरी होती थी ....." साले खाना खा कर तोह आया न ..."
हॉस्टल की मेस हो या मोहाली के EATING POINT के पराठे या फिर SECTOR 22 में डिनर के वक्त एक दूसरे की टांग खीचना अच्छा लगता था |
सबसे ख़ास चीज होती थी ... एक BED सोने वाले 4 ..... ADJUSTMENT करना तो यारो से सीखा ....| फिर ज्यादातर भाई लोग 11 बजने का इंतजार करते और जैसे ही घडी की सुईया 11 को छूती... हमारी भाभियो के फ़ोन बजने लगते | खुशकिस्मत थे वो यार जिनको उनका प्यार मिला .|
हम शरीफ थे , इस लिए लाइब्रेरी जा के पड़ते थे या जो पड़ रहे है , वो लिखता ....
"मै अपनी दोस्ती को शहर में रुस्वा नहीं करता
मुहब्बत मै भी करता था मगर चर्चा नहीं करता .........
फिर सुबह होती जिनको LECTURE के लिए जाना होता वो ..... जल्दी उठते
जिनको गर्लफ्रेंड से मिलने जाना होता वो दिसंबर में ठन्डे पानी से भी नहाते ...|
मै अकेला था जो सब के जाने के बाद 11 बजे उठता ,
दोस्तों को फ़ोन करता पर BALANCE न होता ,
पर्स खोलता वहा भी BALANCE न होता ...
वो ऐसा वक़्त था जब मजबूरी में भी खुल के हस्सी आती .....
लेकिन आज दोस्तों की काफी याद आती है , जीनोने मुझ जैसे नसमझ को इतना समझा
शुक्रिया करता हु ऐसे हालातो को जीनोने अच्छे बुरे की पहचान करनी सिखाई |
आज भी रातों को नींद नही आती, सिर्फ बातें होती हैं, यारों से नहीं उनकी यादों से, उन पलों की यादें ही इतनी है कि उनसे ही फुर्सत नहीं मिलती।
लेकिन अब और नहीं बास कुछ दिन और फिर उसी हॉस्टल के उसी रूम में उन्ही दोस्तों के साथ एक बार फिर से जीने जाऊंगा , अपनी जिन्दगी के सबसे बेहतरीन पलों को.....
ये थे कुछ लम्हे मेरी डायरी में क़ैद जो कभी यारो को मूह पे ना बता पाया ... दिल में थे ... कहने को और बोहत कुछ है वो बतएगे मिल कर ...
कुछ तुम लोग कहना
कुछ मै कहूँगा ....||||||||||||||||||||||||
दोस्तों की शिकायत थी के पंकज शर्मा कभी हमारे बारे में नही लिखता ....